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वाराणसी: अवैध रूप से रह रहे 249 बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों की हुई पहचान, जांच जारी

वाराणसी: अवैध रूप से रह रहे 249 बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों की हुई पहचान, जांच जारी

वाराणसी में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों के खिलाफ पुलिस ने अभियान चलाया, जिसमें 249 संदिग्धों की पहचान हुई, जिनके आधार कार्ड पश्चिम बंगाल के पते पर जारी किए गए हैं, दस्तावेजों का सत्यापन जारी।

वाराणसी: पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद देशभर में सुरक्षा एजेंसियों की सक्रियता बढ़ गई है। इसी क्रम में वाराणसी में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों की पहचान और सत्यापन के लिए स्थानीय पुलिस और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) ने संयुक्त सर्च ऑपरेशन शुरू किया है। इस व्यापक अभियान के दौरान अब तक 249 ऐसे लोगों की पहचान की गई है, जिनके पास आधार कार्ड तो हैं, लेकिन वे सभी पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के पते पर जारी किए गए हैं।

हालांकि, इन दस्तावेजों की प्रामाणिकता को जांचने के लिए जब वाराणसी पुलिस और एलआईयू ने पश्चिम बंगाल पुलिस से संपर्क साधा, तो अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। इसके चलते अब वाराणसी कमिश्नरेट की एक संयुक्त टीम खुद बीरभूम जाकर इन संदिग्धों के दस्तावेजों का सत्यापन करेगी। इस पूरी प्रक्रिया की रिपोर्ट के आधार पर ही आगे की कार्रवाई की जाएगी, जिसमें नागरिकता की वैधता की जांच और आवश्यक कानूनी कार्रवाई शामिल होगी।

काशी में अवैध तरीके से रहने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि पश्चिम बंगाल के रास्ते ट्रेन या अन्य माध्यमों से वे आसानी से वाराणसी पहुंच जाते हैं। यहां पश्चिम बंगाल से आए मूल निवासियों की अच्छी-खासी आबादी पहले से मौजूद है, जिसका फायदा उठाकर ये लोग खुद को बांग्ला भाषी बताकर शहर में बस जाते हैं। इनमें से अधिकतर लोग कबाड़ बीनने, पैडल रिक्शा चलाने, दिहाड़ी मजदूरी या अन्य छोटे-मोटे काम करके जीवन यापन कर रहे हैं।

स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और समय रहते सतर्कता न बरतने के कारण स्थिति यह हो गई है कि अब वाराणसी का कोई भी थाना क्षेत्र ऐसा नहीं बचा, जहां खुद को बांग्ला भाषी बताने वाले संदिग्ध न रहते हों। सुरक्षा एजेंसियों की नजर में यह एक गंभीर चुनौती बन चुका है, क्योंकि पहचान की अस्पष्टता और दस्तावेजों की वैधता संदेह के घेरे में है।

इस संदर्भ में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि अब थानों को निर्देश दिए गए हैं कि ऐसे सभी लोगों के परिवारजनों से अलग-अलग पूछताछ की जाए। अलग-अलग पूछताछ के जरिए उनके भाषायी और सामाजिक व्यवहार के आधार पर यह पता लगाया जाएगा कि वे वास्तविक बांग्ला भाषी भारतीय हैं या फिर अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिक।

गौरतलब है कि इसी वर्ष 8 अप्रैल को वाराणसी की एटीएस यूनिट ने सारनाथ क्षेत्र से एक बांग्लादेशी नागरिक को गिरफ्तार किया था। उसके पास से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर तैयार किए गए भारतीय पासपोर्ट, आधार कार्ड और पैन कार्ड बरामद हुए थे। पूछताछ में उसने खुलासा किया था कि वह पिछले 10 वर्षों से वाराणसी में रह रहा था। उसने म्यांमार जाकर वहां की एक युवती से विवाह भी किया था। शुरुआती जांच में उसने बताया कि वह पहले मिजोरम पहुंचा, जहां एक गिरोह ने उसकी मदद से भारतीय नागरिकता से जुड़े फर्जी दस्तावेज तैयार कर दिए थे। इसके बाद वह असम और बिहार होते हुए वाराणसी आ गया था।

इस घटना ने सुरक्षा एजेंसियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि न सिर्फ सीमा क्षेत्रों में, बल्कि देश के हृदयस्थल तक भी इस तरह के नेटवर्क की जड़ें फैली हुई हैं। यही वजह है कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद वाराणसी जैसे संवेदनशील धार्मिक शहर में भी सतर्कता और जांच की प्रक्रिया तेज कर दी गई है।

प्रशासन का मानना है कि आधार कार्ड के अस्तित्व में आने से पहले ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिक यहां आकर बस गए थे। अब उनकी दूसरी पीढ़ी भी वाराणसी में पनप रही है, जिनके पास अब भारतीय दस्तावेज भी उपलब्ध हैं। यही कारण है कि जांच एजेंसियां इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए दोबारा सत्यापन के कार्य में जुट गई हैं।

सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखने और राष्ट्रीय पहचान प्रणाली की विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे सभी मामलों की गंभीरता से जांच की जा रही है। आने वाले समय में, बीरभूम दौरे और संयुक्त रिपोर्ट के बाद इस पूरे नेटवर्क पर पुलिस का शिकंजा और सख्त हो सकता है।

Published By : SANDEEP KR SRIVASTAVA Updated : Tue, 13 May 2025 06:44 PM (IST)
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Tags: varanasi police illegal immigrants rohingya muslims

Category: crime uttar pradesh

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