वाराणसी: निषादराज जयंती के पावन अवसर पर काशी नगरी में मांझी समाज के लोगों का अद्वितीय उत्साह देखने को मिला। गंगा की लहरों पर जीवन यापन करने वाले निषाद समुदाय के सैकड़ों लोगों ने इस विशेष दिन पर नाव संचालन बंद कर भव्य शोभायात्रा निकाली। यह यात्रा आस्था, परंपरा और भाईचारे का प्रतीक बनी।
रामायण में वर्णित है कि भगवान श्रीराम जब वनवास पर निकले थे, तब निषादराज गुहा ने उनका मार्गदर्शन करते हुए गंगा पार करवाई थी। श्रीराम और निषादराज गुहा की यह मित्रता आदर्श मानी जाती है। इस ऐतिहासिक प्रसंग से प्रेरित होकर मांझी समाज के लोग निषादराज जयंती को विशेष श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाते हैं।
सुबह से ही वाराणसी के विभिन्न गंगा घाटों पर मांझी समाज के लोगों की चहल-पहल बढ़ गई थी। विभिन्न घाटों से आए श्रद्धालु दशाश्वमेध घाट पर एकत्रित हुए, जहां से शोभायात्रा का शुभारंभ हुआ। पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे लोगों ने ढोल-नगाड़ों की थाप पर नृत्य किया और भक्ति गीतों की धुन पर झूमते नजर आए। जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
शोभायात्रा में भगवान श्रीराम और निषादराज गुहा की भव्य झांकी निकाली गई, जिसे देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। झांकी में निषादराज गुहा द्वारा भगवान राम को गंगा पार कराते हुए दर्शाया गया, जिससे रामायण के इस प्रसंग को जीवंत करने का प्रयास किया गया।
यह शोभायात्रा दशाश्वमेध घाट से प्रारंभ होकर गोदौलिया, सोनारपुरा होते हुए निषादराज घाट पर समाप्त हुई। पूरे मार्ग पर श्रद्धालु फूलों की वर्षा कर यात्रा का स्वागत करते नजर आए। मांझी समाज के युवा, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे इस ऐतिहासिक आयोजन में बढ़-चढ़कर शामिल हुए।
यात्रा के दौरान निषादराज गुहा की महिमा का गुणगान किया गया। उनके आदर्शों और समाज में उनके योगदान को याद करते हुए लोगों ने ‘निषादराज अमर रहें’ के नारों से समूचे क्षेत्र को गुंजायमान कर दिया। गंगा तट पर पहुंचकर सामूहिक आरती और श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई, जिसमें समाज के गणमान्य लोगों ने निषादराज की विरासत और उनके संघर्ष पर प्रकाश डाला।
इस आयोजन ने यह दर्शा दिया कि मांझी समाज अपनी सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को संजोए रखने के लिए कितना समर्पित है। इस अवसर पर कई समाजसेवी, धार्मिक नेता और गणमान्य लोग भी उपस्थित रहे। वक्ताओं ने निषादराज की वीरता और उनके योगदान को याद करते हुए समाज को एकजुट रहने का संदेश दिया।
इस भव्य आयोजन से यह स्पष्ट हो गया कि आने वाले वर्षों में निषादराज जयंती और भी भव्य तरीके से मनाई जाएगी। मांझी समाज की इस ऊर्जा और उत्साह ने यह प्रमाणित कर दिया कि वह अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने और अपने इतिहास को जीवंत रखने के लिए संकल्पित है।
वाराणसी में निषादराज जयंती पर निकली इस शोभायात्रा ने आस्था, परंपरा और एकता का अनोखा संदेश दिया। मांझी समाज के सैकड़ों लोगों की इस भागीदारी ने इस आयोजन को अविस्मरणीय बना दिया।
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