वाराणसी: काशी आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए गंगा में नौकायन का आनंद लेना अब संभव नहीं होगा, क्योंकि वाराणसी के सभी नाविकों ने प्रशासनिक कार्रवाई के विरोध में नौका संचालन बंद कर दिया है। नाविक समाज में भारी आक्रोश है, जिससे घाटों पर सन्नाटा पसरा हुआ है और हजारों सैलानी निराश लौट रहे हैं।
बीते दिनों वाराणसी के गंगा घाट पर दो नावों की टक्कर के बाद कुछ सैलानी गंगा में गिर गए थे। इस घटना के बाद स्थानीय नाविकों और एनडीआरएफ की मदद से सैलानियों को सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया। हालांकि, इस सराहनीय कार्य के बावजूद प्रशासन ने दो नाविकों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कर लिया, जिससे नाविक समाज में नाराजगी फैल गई।
नाविक समाज का कहना है कि उन्होंने हादसे में लोगों की जान बचाने में मदद की, लेकिन प्रशासन ने उनके खिलाफ कार्रवाई कर दी। प्रशासन द्वारा लगातार नाविकों पर केस दर्ज करने और शांति भंग की आशंका में गिरफ्तारियां करने के विरोध में नाविक समाज ने अनिश्चितकालीन नौका संचालन बंद करने का फैसला किया है।
इस कार्रवाई के तहत अब तक 12 से अधिक नाविकों को जेल भेजा जा चुका है, जबकि कुछ पर भारतीय दंड संहिता की गंभीर धाराओं में मामले दर्ज किए गए हैं। रोजी-रोटी पर संकट, सैलानी भी हुए परेशान वाराणसी के 84 घाटों पर करीब 5,000 से 6,000 नावें चलती हैं, जिससे प्रत्यक्ष रूप से 50,000 से 60,000 लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है। नौकायन बंद होने से नाविकों के परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
उधर, काशी आने वाले श्रद्धालु और देश-विदेश के पर्यटक भी निराश हो रहे हैं। रोज़ाना करीब 3 से 4 लाख पर्यटक गंगा में नौकायन करते हैं, लेकिन संचालन बंद होने से उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासन की कार्रवाई के खिलाफ नाविक समाज आज दशाश्वमेध घाट पर एक महत्वपूर्ण बैठक करेगा। इसमें यह तय किया जाएगा कि नौका संचालन दोबारा शुरू किया जाए या अनिश्चितकाल के लिए बंद रखा जाए। नाविक समाज का कहना है कि जब तक प्रशासन निष्पक्ष कार्रवाई नहीं करता, तब तक वे अपने विरोध को जारी रखेंगे।
काशी के ऐतिहासिक घाटों और गंगा आरती को देखने के लिए हर साल लाखों सैलानी यहां आते हैं। नौकायन बंद होने से न केवल पर्यटकों को असुविधा हो रही है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन उद्योग पर भी असर डाल सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि प्रशासन इस संकट का समाधान कैसे निकालेगा? क्या नाविकों की मांगों को सुना जाएगा या फिर उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया जाएगा? नाविक समाज और प्रशासन के बीच टकराव की यह स्थिति कब तक जारी रहेगी, यह देखने वाली बात होगी।
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