वाराणसी: रंगभरी एकादशी के पावन अवसर पर बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती की प्रतिमा को 350 सालों के इतिहास में पहली बार कपड़े से ढककर निकाला गया। यह प्रतिमा अपने पारंपरिक रास्तों से होते हुए विश्वनाथ धाम पहुंची, जहां इसे शंकराचार्य चौक पर दर्शन के लिए रखा गया। इस अनूठी घटना ने काशीवासियों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है, क्योंकि यह परंपरा सदियों से खुले तौर पर निभाई जाती रही है।
रंगभरी एकादशी के मौके पर बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती की प्रतिमा को टेढ़ी नीम स्थित पूर्व महंत आवास से विश्वनाथ धाम के लिए रवाना किया गया। हालांकि, इस बार प्रतिमा को कपड़े से ढककर निकाला गया, जो 350 सालों के इतिहास में पहली बार हुआ है। प्रतिमा को पालकी में स्थापित कर भारी पुलिस बल की मौजूदगी में विश्वनाथ धाम ले जाया गया। शंकराचार्य चौक पर प्रतिमा को दर्शन के लिए रखा गया, जहां लोकाचार संपन्न कराए गए और आरती की गई।
इस नए तरीके को लेकर काशीवासियों में गहरा आक्रोश देखा गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा सदियों से खुले तौर पर और धूमधाम के साथ निभाई जाती रही है। पहली बार प्रतिमा को ढककर निकालने को लेकर लोगों ने इसे परंपरा के साथ छेड़छाड़ बताया। उनका मानना है कि इस तरह के बदलाव से उनकी आस्था और विश्वास को ठेस पहुंची है।
रंगभरी एकादशी का काशी में विशेष महत्व है। इस दिन बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती के गौने की परंपरा निभाई जाती है। इसके बाद ही काशीवासी होली खेलने की अनुमति मानते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे लेकर लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है।
इस बार प्रतिमा को ढककर निकालने के पीछे प्रशासन की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। काशीवासियों का कहना है कि प्रशासन को परंपराओं का सम्मान करना चाहिए और इन्हें उचित तरीके से निभाने में सहयोग देना चाहिए। उन्होंने मांग की है कि आने वाले समय में इस तरह की परंपराओं को उचित सम्मान और धूमधाम के साथ निभाया जाए।
350 सालों के इतिहास में पहली बार बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती की प्रतिमा को ढककर निकाला जाना काशीवासियों के लिए एक नई और चौंकाने वाली घटना है। यह घटना न केवल परंपरा में बदलाव का प्रतीक है, बल्कि लोगों की आस्था और विश्वास को भी प्रभावित करती है। आने वाले समय में प्रशासन और धार्मिक नेताओं को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा, ताकि परंपराओं और आस्था का सम्मान बना रहे।
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