वाराणसी/जौनपुर/रामनगर: उत्तर प्रदेश में बीते कुछ हफ्तों से गोतस्करी के मामले जिस तरह से हिंसक रूप ले रहे हैं, उससे न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि यह भी आशंका गहराती जा रही है कि इन वारदातों के पीछे कोई संगठित और सशक्त सिंडिकेट काम कर रहा है। ताज़ा घटनाएं वाराणसी, जौनपुर और रामनगर से सामने आई हैं, जिनमें पुलिस के ऊपर फायरिंग, जानलेवा हमले और गोवंश की तस्करी के लिए अजीबोगरीब तरीके अपनाए जा रहे हैं — कहीं प्याज के बोरे के नीचे गाय छिपाई जा रही है, तो कहीं आलू के बोरे में।
रविवार की सुबह वाराणसी के डाफी टोल प्लाजा पर लंका पुलिस और गोतस्करों के बीच एक सनसनीखेज मुठभेड़ हो गई। प्याज से भरे एक पिकअप वाहन को पुलिस ने रोका, लेकिन जब गाड़ी की जांच की जाने लगी तो उसमें से कुछ हलचल की आवाजें सुनाई दीं। पुलिस के सख्त रुख को भांपते ही चालक ने वाहन भगाने की कोशिश की और सर्विस रोड पर दौड़ लगा दी। पुलिस के पीछा करने पर पिकअप सवार तस्करों ने अचानक पुलिस टीम पर फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में लंका पुलिस ने भी गोली चलाई और थोड़ी ही देर में दोनों तस्कर गोली लगने से घायल होकर गिर पड़े। पुलिस ने उन्हें काबू में लेकर अस्पताल में भर्ती कराया।
गिरफ्तार तस्करों की पहचान रामपुर निवासी मोहम्मद हसन और बरेली निवासी नजीमुद्दीन के रूप में हुई है। पुलिस के अनुसार, दोनों प्याज की बोरियों के नीचे गायों को छिपाकर तस्करी कर रहे थे और इनके पास से अवैध असलहे भी बरामद किए गए हैं। आशंका है कि यह एक बड़े सिंडिकेट का हिस्सा हैं, जो गोतस्करी के धंधे में सक्रिय है और ऐसे तस्करों को असलहा भी मुहैया कराता है।
इसी तरह की एक और भयावह घटना जौनपुर जिले में शनिवार देर रात सामने आई, जिसने पुलिस महकमे को झकझोर कर रख दिया। चंदवक थाने के आरक्षी दुर्गेश सिंह, जो मूलतः चंदौली के निवासी थे, गौतस्करों के हमले में जान गंवा बैठे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने आजमगढ़-वाराणसी मार्ग पर घेराबंदी की थी, लेकिन एक पिकअप वाहन ने बैरिकेडिंग तोड़ दी और भागने की कोशिश में खुज्जी मोड़ पर आरक्षी दुर्गेश सिंह को बेरहमी से कुचल दिया। दुर्गेश को गंभीर हालत में ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया, जहां देर रात 2:40 बजे ब्रेन हैमरेज से उनकी मौत हो गई। वे 2011 बैच के आरक्षी थे और अपनी ईमानदारी तथा कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। उनकी मौत से पूरे पुलिस विभाग में शोक की लहर दौड़ गई है।
महज कुछ दिन पहले इसी इलाके में एक महिला दरोगा समेत कई पुलिसकर्मियों पर गोतस्करों ने वाहन चढ़ा कर रौंदने की कोशिश की थी, जिससे कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह घटनाएं एक ही जिले में नहीं, बल्कि रामपुर, जौनपुर, वाराणसी और आसपास के जिलों में लगातार सामने आ रही हैं, और अधिकतर मामलों में आरोपी एक ही जिले रामपुर से संबंधित पाए जा रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या इन घटनाओं के पीछे किसी संगठित अपराध गिरोह का हाथ है?
पुलिस अब इन मामलों की जांच एक बड़े एंगल से कर रही है, कि गोतस्करी का यह नेटवर्क केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि एक गहरी साजिश का हिस्सा हो सकता है, जिसमें हथियार, हिंसा और राजनीतिक संरक्षण की भी भूमिका हो सकती है। मुठभेड़ों के दौरान तस्करों द्वारा पुलिस पर फायरिंग करना, पिकअप से कुचल कर मारना और लगातार जमानत पर बाहर आकर फिर से उसी अपराध में लिप्त होना यह दर्शाता है कि ये केवल छिटपुट अपराधी नहीं हैं, बल्कि उनके पीछे एक पूरी संरचना काम कर रही है।
योगी आदित्यनाथ की सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन पर अब दबाव बढ़ता जा रहा है कि वह इस मामले में सख्त और निर्णायक कदम उठाए। जनमानस में यह चिंता गहराने लगी है कि अगर पुलिस पर ही इस तरह खुलेआम हमले हो रहे हैं, तो आम नागरिकों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जा सकती है। सरकार से यह भी मांग उठ रही है कि ऐसे अपराधियों को बार-बार जमानत पर रिहा होने से रोकने के लिए एक सख्त और विशिष्ट कानून बनाया जाए, जिससे गोतस्करी जैसे अपराधों में लिप्त लोगों पर कठोरतम कार्यवाही की जा सके।
पुलिस ने इन घटनाओं के बाद ताबड़तोड़ छापेमारी और धरपकड़ अभियान शुरू कर दिए हैं। सभी जिलों की सीमाओं पर चेकिंग बढ़ा दी गई है और खुफिया तंत्र को भी सक्रिय किया गया है। साथ ही, फॉरेंसिक टीमों को घटनास्थलों से सबूत जुटाने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि कोर्ट में भी ठोस सबूतों के आधार पर आरोपियों को कठोर सज़ा दिलाई जा सके।
अब जब एक आरक्षी की जान जा चुकी है, दर्जनों पुलिसकर्मी घायल हो चुके हैं और जनता में असुरक्षा की भावना गहराने लगी है, तब यह अनिवार्य हो गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार इस सिंडिकेट के खिलाफ युद्ध स्तर पर अभियान चलाए और यह सुनिश्चित करे कि इस तरह की घटनाएं भविष्य में दोबारा न हों।
गौतस्करी अब केवल सामाजिक या धार्मिक मुद्दा नहीं रहा, यह एक संगठित और हिंसक आपराधिक गतिविधि में तब्दील हो चुका है, जिसे रोकने के लिए नीति, प्रशासनिक इच्छाशक्ति और कानूनी सख्ती तीनों की तत्काल जरूरत है।
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