वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में पीएचडी प्रवेश को लेकर उठे विभिन्न विवादों और प्रक्रियागत अनियमितताओं के मद्देनजर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बड़ा कदम उठाया है। यूजीसी ने बीएचयू में सत्र 2024-25 के लिए चल रही पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया और यूजीसी के मौजूदा नियमों के अनुपालन की गहन जांच सुनिश्चित करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति भी गठित कर दी गई है। यूजीसी सचिव मनीष आर. जोशी ने सोमवार को इस संबंध में एक आधिकारिक पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि बीएचयू में पीएचडी प्रवेश को लेकर कई विसंगतियां सामने आई हैं, जिन्हें गंभीरता से लिया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी विश्वविद्यालयों को पहले ही यह निर्देशित किया जा चुका है कि पीएचडी डिग्री प्रदान करने की प्रक्रिया को यूजीसी (न्यूनतम मानक और प्रक्रिया) विनियम, 2022 के अनुरूप संचालित करना अनिवार्य है।
पत्र में आगे बताया गया कि पीएचडी कार्यक्रमों में छात्रों को प्रवेश देने और डिग्री प्रदान करने में मानक प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित करना विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है। बीएचयू में प्रवेश से जुड़ी शिकायतों और अनियमितताओं को देखते हुए यूजीसी ने यह निर्णय लिया है कि जब तक जांच समिति अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर देती और जांच अधिकारी कोई अंतिम निर्णय नहीं ले लेते, तब तक विश्वविद्यालय पीएचडी प्रवेश से संबंधित किसी भी प्रकार की अगली कार्रवाई नहीं करेगा। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कार्यवाहक कुलपति और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को भी इस विषय में विस्तार से चर्चा और स्पष्टीकरण के लिए एक बार फिर दिल्ली तलब किया गया है। इससे यह संकेत मिलता है कि यूजीसी इस मामले को अत्यंत गंभीरता से ले रहा है और उच्च शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता और प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्ध है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यूजीसी द्वारा उठाया गया यह कदम उच्च शिक्षा प्रणाली में नियामक प्रक्रियाओं के प्रति अनुशासन और जवाबदेही को मजबूत करेगा। बीएचयू देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में गिना जाता है और ऐसे में वहां किसी भी स्तर पर प्रवेश प्रक्रिया में त्रुटि या लापरवाही न केवल संस्थान की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकती है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा के प्रति विश्वास को भी कमजोर कर सकती है। जांच समिति की रिपोर्ट और उसके आधार पर लिए जाने वाले निर्णयों का आने वाले समय में न केवल बीएचयू पर, बल्कि अन्य विश्वविद्यालयों की प्रवेश प्रक्रियाओं पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों को पहले ही स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं कि 2022 के संशोधित विनियमों के तहत पीएचडी प्रवेश परीक्षाएं, पात्रता मापदंड, शोध कार्य की निगरानी और डिग्री प्रदान करने की समूची प्रक्रिया निर्धारित मानकों के अनुसार होनी चाहिए। बीएचयू में सामने आई शिकायतों से यह संकेत मिलता है कि कहीं न कहीं इन निर्देशों के अनुपालन में गंभीर चूक हुई है, जिसे अब सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। यूजीसी ने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि वह निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए समिति को स्वतंत्र अधिकार देगा, ताकि किसी भी प्रकार के दबाव या प्रभाव के बिना सच्चाई को सामने लाया जा सके।
अब सभी की निगाहें बीएचयू और यूजीसी की आगामी कार्रवाइयों पर टिकी हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि वह समिति के साथ पूर्ण सहयोग करे और आवश्यक दस्तावेज, रिकॉर्ड तथा विवरण जांच टीम को समयबद्ध रूप से उपलब्ध कराए। विद्यार्थियों और अभिभावकों के बीच इस खबर के बाद स्वाभाविक रूप से चिंता का माहौल है, विशेषकर उन छात्रों के बीच जिन्होंने सत्र 2024-25 के लिए पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में भाग लेने की तैयारी कर रखी थी। हालांकि, यूजीसी की ओर से यह भी संकेत दिया गया है कि जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद यदि आवश्यक हुआ तो प्रवेश कार्यक्रम को नए सिरे से और निर्धारित मानकों के अनुरूप पुनः संचालित किया जाएगा, ताकि योग्य छात्रों के हितों की रक्षा की जा सके और शिक्षा व्यवस्था में भरोसा कायम रहे।
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