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तेलंगाना से आई वेंकटमा ने काशी में त्यागे प्राण, मोक्ष की नगरी में अंतिम इच्छा हुई पूरी

तेलंगाना से आई वेंकटमा ने काशी में त्यागे प्राण, मोक्ष की नगरी में अंतिम इच्छा हुई पूरी

किडनी की बीमारी से जूझ रही तेलंगाना की 80 वर्षीय वेंकटमा ने वाराणसी के कबीरचौरा अस्पताल में अंतिम सांस ली, उनकी अंतिम इच्छा थी कि वे काशी में अपने जीवन के अंतिम क्षण बिताएं।

वाराणसी: काशी, एक ऐसा शहर जहां जीवन और मृत्यु के बीच की दूरी विलीन हो जाती है। यह शहर केवल एक पवित्र नगरी नहीं, बल्कि वह स्थान है जहां हर व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में मोक्ष की आशा लेकर आता है। ठीक ऐसा ही हुआ तेलंगाना की रहने वाली 80 वर्षीय वेंकटमा के साथ, जो जीवन भर की पीड़ा और अंतर्मन की शांति की तलाश में काशी आई थीं।

वेंकटमा पिछले एक वर्ष से किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं। इलाज की जरूरत तो थी, लेकिन बेटे पुतुराजू की आर्थिक स्थिति उन्हें किसी बड़े अस्पताल तक ले जाने की इजाज़त नहीं दे रही थी। पुतुराजू एक बेकरी कंपनी में साधारण कर्मचारी हैं। मां की बीमारी और अपनी असमर्थता ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया था। लेकिन उनकी मां की एक आकांक्षा थी — जीवन के अंतिम क्षण काशी में बिताना। इसीलिए पांच दिन पहले वे मां को लेकर वाराणसी आ गए, शायद यह जानते हुए कि अब समय ज़्यादा नहीं बचा है।

वाराणसी के कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल में वेंकटमा का इलाज शुरू हुआ। डॉक्टरों ने पूरी कोशिश की, लेकिन जीवन की डोर इतनी कमज़ोर हो चुकी थी कि उसे बांधना किसी के वश में नहीं था। अस्पताल में बिताए वे कुछ दिन पुतुराजू के लिए बेहद कठिन थे — एक ओर मां की बिगड़ती हालत, दूसरी ओर आर्थिक तंगी और अपरिचित शहर की चुनौतियां।

जब पैसे भी खत्म हो गए और सहारा कहीं नहीं दिखा, तब पुतुराजू को अस्पताल से एक समाजसेवी अमन कबीर का नंबर मिला। एक कॉल पर अमन कबीर अस्पताल पहुंचे और पुतुराजू को एक ऐसे समय में सहारा दिया जब हर दरवाज़ा बंद लग रहा था। अमन न सिर्फ अंतिम संस्कार की व्यवस्था में मददगार बने, बल्कि उन्होंने खुद वेंकटमा की अर्थी को कंधा भी दिया — एक ऐसा कार्य जो केवल आत्मिक संवेदनशीलता रखने वाला ही कर सकता है।

वेंकटमा का अंतिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट पर विधिपूर्वक संपन्न हुआ, वही घाट जो शास्त्रों में मोक्ष का द्वार माना जाता है। मां की अंतिम इच्छा पूरी हुई, और उनके बेटे ने संतोष की सांस ली — यह जानते हुए कि भले ही जीवन ने उन्हें बहुत कुछ न दिया हो, लेकिन मां की अंतिम चाह पूरी हो गई।

इसके बाद अमन कबीर ने पुतुराजू की घर वापसी की व्यवस्था भी करवाई। यह पूरी घटना न सिर्फ एक मां-बेटे के अटूट रिश्ते की कहानी है, बल्कि उस मानवीय करुणा की मिसाल भी है, जो आज के समाज में कहीं खोती सी लगती है।

काशी ने फिर एक बार अपने नाम को सार्थक किया — मोक्ष की नगरी, जहां मृत्यु एक अंत नहीं, बल्कि आत्मा की शांति की शुरुआत मानी जाती है। वेंकटमा की कहानी न सिर्फ एक खबर है, बल्कि एक ऐसा सच है जो जीवन, मृत्यु और श्रद्धा को एक साथ जोड़ता है।

Published By : SANDEEP KR SRIVASTAVA Updated : Sat, 10 May 2025 03:47 PM (IST)
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Tags: kashi news varanasi news moksha nagari

Category: breaking news uttar pradesh news

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