वाराणसी: कल्पना कीजिए, आप एक ऐतिहासिक स्थल घूमने आए हैं, अपने परिवार के साथ, अपनी माँ, बहन, बेटी के साथ। लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें शौचालय की जरूरत महसूस होती है, और पूरी जगह में कहीं कोई सुविधा नहीं मिलती। सोचिए, क्या बीतती होगी उन पर, जब वे असहज महसूस करती हैं, जब उन्हें मजबूरी में पानी कम पीना पड़ता है, जब उन्हें अपनी जरूरत को नजरअंदाज करना पड़ता है।
यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि रामनगर की सच्चाई है। यहाँ हर दिन हजारों महिलाएं, बच्चियां, बुजुर्ग महिलाएं किला घूमने और बाजार में खरीदारी करने आती हैं, लेकिन उनके लिए शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा तक मौजूद नहीं है। यह केवल असुविधा नहीं, बल्कि एक बड़ा सवाल है—क्या हम सच में अपनी बहनों और बेटियों का सम्मान कर रहे हैं।
महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती, प्रशासन मौन:
रामनगर बाजार की संकरी गलियों में दिनभर चहल-पहल रहती है। महिलाएं अपने परिवार के लिए खरीदारी करती हैं, पर्यटक हर गली-मोहल्ले की खूबसूरती निहारते हैं। लेकिन अगर किसी महिला को शौचालय जाना हो, तो पूरी जगह में एक भी सुविधा नहीं मिलती। कहीं मजबूरी में उन्हें निजी दुकानों या होटलों की तरफ देखना पड़ता है, और कहीं वे घंटों तक अपनी जरूरत को टालने की कोशिश करती हैं।
समाजसेवियों ने उठाई आवाज, लेकिन कोई सुनवाई नहीं
समाजसेवी रामु यादव ने कहा, हम अपने शहर को सुंदर बनाने की बात करते हैं, लेकिन जब बुनियादी जरूरतें ही पूरी नहीं होतीं, तो कैसी सुंदरता महिलाओं को यह शर्मिंदगी कब तक झेलनी पड़ेगी। उन्होंने भावुक होकर कहा, कई बार मैंने महिलाओं को बच्चों के साथ असहाय हालत में इधर-उधर भटकते देखा है। यह हमारी असंवेदनशीलता को दिखाता है। प्रशासन सिर्फ कागजों में विकास दिखा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।
युवा समाजसेवी निरंजन सिंह ने कहा, रामनगर चौराहे पर पहले एक शौचालय था, जिसे सड़क चौड़ीकरण में तोड़ दिया गया। लेकिन दोबारा बनाने की जरूरत किसी ने महसूस नहीं की। क्या महिलाओं की जरूरतें इतनी महत्वहीन हैं।
गर्मियों में बढ़ी मुश्किलें, पानी और विश्राम गृह की भी कमी:
गर्मी के मौसम में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है। घंटों घूमने के बाद, महिलाएं और पर्यटक पीने के पानी के लिए तरस जाते हैं। कोई जगह नहीं जहां वे बैठकर आराम कर सकें। समाजसेवी नीरज पांडेय कहते हैं, कई बार महिलाएं और बुजुर्ग परेशान होकर छायादार स्थानों की तलाश में भटकते हैं। प्रशासन को वाटर कूलर और विश्राम गृह की व्यवस्था करनी चाहिए।
‘पिंक टॉयलेट’ की मांग, कब जागेगा प्रशासन:
देशभर के कई शहरों में महिलाओं के लिए ‘पिंक टॉयलेट’ बनाए गए हैं, जहाँ स्वच्छता और सुरक्षा दोनों का ध्यान रखा जाता है। लेकिन रामनगर जैसे ऐतिहासिक स्थल पर अब तक ऐसी कोई पहल नहीं हुई। प्रशासन को चाहिए कि जल्द से जल्द इस दिशा में ठोस कदम उठाए।
क्या महिलाओं की गरिमा का कोई मोल नहीं:
यह सिर्फ एक शौचालय की मांग नहीं, बल्कि महिलाओं के सम्मान की बात है। क्या हम अपनी माताओं, बहनों और बेटियों को यूँ ही असहज छोड़ सकते हैं। प्रशासन से अनुरोध है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और जल्द से जल्द महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय, वाटर कूलर और विश्राम गृह की व्यवस्था करे।
रामनगर की महिलाएं अब सवाल पूछ रही हैं—क्या हमें सम्मान से जीने का अधिकार नहीं, प्रशासन कब जागेगा।
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