वाराणसी: रामनगर/ देश के ईमानदार नेतृत्व और जय जवान जय किसान के नायक, भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रतिमा की दुर्दशा आज पूरे रामनगर की गवाही बन चुकी है। नगर निगम के स्पष्ट नियमों के बावजूद, जिनके तहत सार्वजनिक स्थलों, खंभों, दीवारों और होर्डिंग्स पर विज्ञापन लगाने के लिए परमिशन आवश्यक है, पूरे नगर के सरकारी खंभे, दीवारें और यहाँ तक कि शास्त्री जी की प्रतिमा भी अवैध बैनरों और विज्ञापनों से पट चुकी है।
शास्त्री जी की प्रतिमा पर न सफाई, न सजावट
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो यह है कि जिस प्रतिमा पर कभी देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी माला चढ़ा चुके हैं, वही प्रतिमा नियमित सफाई और देखरेख के अभाव में उपेक्षित पड़ी है। यहाँ हर आने वाले जनप्रतिनिधि, समाजसेवी और विशिष्ट अतिथि का पहला कदम माल्यार्पण के लिए पड़ता है, परंतु उसके बाद किसी की नजर उस स्थान की दुर्दशा पर नहीं जाती।
रामनगर का दुर्भाग्य—महापुरुषों के सम्मान की अनदेखी
रामनगर का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतने बड़े कद के नेता की प्रतिमा के चारों ओर बेतरतीब विज्ञापनों का अंबार लगा है। हैरानी की बात तो तब होती है जब पता चलता है कि इसी रामनगर से वर्तमान राज्यपाल भी ताल्लुक रखते हैं, और पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य भी यहीं से हैं। बावजूद इसके, न तो नगर निगम की ओर से कोई सख्त कार्रवाई होती है और न ही स्थानीय प्रशासन इस विषय पर गंभीर है।
क्या महापुरुषों का सम्मान बस औपचारिकता रह गया है?
आज यह प्रश्न उठता है कि क्या हम अपने महापुरुषों का सम्मान सिर्फ औपचारिकता तक सीमित कर चुके हैं? उनके आदर्शों और त्याग को याद करने के बजाय, उनकी प्रतिमाओं को विज्ञापनबाजी का अड्डा बना देना हमारे समाज की संवेदनहीनता को उजागर करता है।
शास्त्री जी का योगदान, जिसे याद रखना हमारा कर्तव्य है
लाल बहादुर शास्त्री जी न सिर्फ एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय जय जवान जय किसान जैसे प्रेरक नारों से देश को नई ऊर्जा दी थी। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति का प्रतीक है। ऐसे महापुरुष की प्रतिमा की यह उपेक्षा हम सभी के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए।
समाधान क्या है?
यह समय है कि नगर निगम, प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि इस ओर त्वरित ध्यान दें।
1. विज्ञापन लगाने की परमिशन प्रक्रिया को सख्ती से लागू किया जाए।
2. शास्त्री जी की प्रतिमा के आसपास विज्ञापनों को तत्काल हटाया जाए।
3. नियमित सफाई और रखरखाव की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
4. स्थानीय नागरिकों और समाजसेवी संगठनों को इस अभियान में सक्रिय रूप से जोड़ा जाए।
महापुरुषों का सम्मान केवल एक दिन का कार्यक्रम नहीं, बल्कि हमारे नैतिक मूल्यों का प्रतिबिंब होना चाहिए।
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