झूसी: प्रयागराज शहर से वाराणसी की ओर बढ़ने पर शास्त्री ब्रिज पार करते ही झूंसी इलाका शुरू हो जाता है। यहां गंगा नदी के किनारे लगभग 4 किलोमीटर के दायरे में फैला यह क्षेत्र अपने ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहां गंगा के किनारे टीलों की एक श्रृंखला दिखाई देती है, जिसके नीचे प्राचीन निर्माण दबे हुए हैं। इस क्षेत्र को लोग "उल्टा किला" के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि यहां प्राचीनकाल में प्रतिष्ठानपुर नगर बसा हुआ था, जो चंद्रवंशीय राजाओं की राजधानी भी थी।
झूंसी के नामकरण और उल्टे किले को लेकर कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी के अनुसार, झूंसी का नाम राजा हरिबोंग से जुड़ा है। कहा जाता है कि हरिबोंग एक मूर्ख और अत्याचारी राजा था, जिसके फैसले हमेशा उसके लोगों के लिए नुकसानदायक होते थे। एक बार उसने एक संत का अपमान किया, जिसके बाद संत ने श्राप दिया कि एक सितारा उसके किले पर गिरेगा और उसे उल्टा कर देगा। मान्यता है कि मिर्रिख सितारा किले पर गिरा और किला उल्टा हो गया।
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा हरिबोंग ने गुरु गोरखनाथ और मत्स्येंद्र नाथ का अपमान किया, जिसके बाद उन्होंने श्राप दिया कि राजा की नगरी झुलस जाएगी। श्राप के प्रभाव से राजा की राजधानी पर वज्रपात हुआ और पूरी नगरी झुलस गई। इसके बाद इस स्थान को झुलसी कहा जाने लगा, जो बाद में झूंसी हो गया।
उल्टा किले के अंदर एक ऐतिहासिक और पवित्र समुद्र कूप है, जिसका निर्माण गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त ने कराया था। बाद में ब्रिटिश काल में लार्ड कर्जन ने इसका जीर्णोद्धार कराया। इस कूप की बनावट घुमावदार है और इसमें डाला गया सिक्का सीधे नीचे नहीं गिरता, बल्कि दीवारों से टकराता हुआ नीचे पहुंचता है। इस कूप के जल के बारे में मान्यता है कि इसमें औषधीय गुण हैं और यह क्षय रोग को ठीक कर सकता है।
उल्टा किले के अंदर कई छोटे-छोटे मंदिरों के समूह भी हैं, जिनमें प्राचीन राम जानकी मंदिर प्रमुख है। इस मंदिर में राम-जानकी के साथ ही कई देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अलावा, यहां श्री हनुमान गुफा भी है, जहां 27 सीढ़ियों से नीचे उतरकर हनुमान जी की प्रतिमा के दर्शन होते हैं।
मध्यकाल में झूंसी का इतिहास और भी रोचक हो जाता है। कहा जाता है कि 1359 में मध्य एशिया से एक फकीर अली मुर्तजा यहां आए थे। राजा हरिबोंग ने उनका अपमान किया, जिसके बाद फकीर ने श्राप दिया और राजा की नगरी झुलस गई। इसके अलावा, 13-14वीं शताब्दी में विदेशी आक्रांताओं ने इस नगर पर हमला कर इसे जला दिया था, जिसके बाद इसे झुलसी कहा जाने लगा।
इतिहासकारों के अनुसार, चंदावर के युद्ध के बाद मोहम्मद गोरी ने वाराणसी पर हमला किया था और रास्ते में प्रतिष्ठानपुरी में ठहरा था। हालांकि, यहां उसे लूटपाट के लिए कुछ खास नहीं मिला।
उल्टा किला अपने ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इतिहासकारों का मानना है कि इस स्थान को पर्यटकों के लिए विकसित किया जाना चाहिए। यदि इसे यूपी पर्यटन के टूरिस्ट मैप पर शामिल किया जाए, तो बड़ी संख्या में लोग यहां आकर इसके रहस्य और रोमांच को जान सकते हैं।
अगली बार जब भी आप प्रयागराज आएं, झूंसी के उल्टा किले को देखना न भूलें। यह स्थान न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए बल्कि रहस्य और रोमांच के शौकीनों के लिए भी एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है।
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