उन्नाव: जनपद के एक छोटे से गांव से उठी यह घटना सिर्फ एक अपराध नहीं है, यह मानव संवेदनाओं को झकझोर देने वाली एक त्रासदी है, जिसने एक परिवार ही नहीं, पूरे समाज को सदमे में डाल दिया है। यह कहानी है 27 वर्षीय अंकित पटेल की, जो हर रोज की तरह अपने मेडिकल स्टोर से घर लौटने के लिए निकला था, पर फिर कभी लौटकर नहीं आया।
अंकित हरदोई के मल्लावां थाना क्षेत्र के गौसगंज में मेडिकल स्टोर चलाते थे। 23 मई की रात वह घर के लिए निकले, लेकिन रास्ते में क्या हुआ, यह अब तक एक रहस्य है। जब वह अगली सुबह तक घर नहीं पहुंचे और उनका मोबाइल भी बंद मिला, तब छोटे भाई अतुल पटेल, जो भाजपा कार्यकर्ता हैं, ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई। परिवार में बेचैनी थी, गांव में सन्नाटा और आंखों में एक ही सवाल "अंकित कहां है?"
पुलिस की शुरुआत में सुस्त जांच और परिजनों की आशंका के बीच समय तेजी से गुजरता गया। दो दिन बाद शादीपुर गांव के पास नहर किनारे अंकित की टूटी-फूटी बाइक मिली। पुलिस ने इसे संयोग माना और गंभीरता नहीं दिखाई। लेकिन गांव के लोगों ने हार नहीं मानी। 27 मई की रात को जब गंगा एक्सप्रेसवे के निर्माणाधीन हिस्से के पास से दुर्गंध आने लगी, तो गांववालों ने शक के आधार पर खुद ही जांच शुरू की।
सीमेंट के लगभग 15 इंच व्यास के जलनिकासी पाइप के मुहानों को मिट्टी से बंद किया गया था, ताकि कोई अंदर झांक न सके। जब मिट्टी हटाई गई, तो सबसे पहले एक हाथ की उंगली दिखाई दी। और जब उसे खींचने की कोशिश की गई, तो वह उखड़ कर हाथ में आ गई। यह दृश्य इतना भयानक और असहनीय था कि वहां मौजूद हर इंसान सन्न रह गया। इसके बाद दो सिपाही पाइप में घुसे और शव को बाहर निकाला। यह वही अंकित था, जिसे परिवार और गांव के लोग दिन-रात ढूंढ़ रहे थे।
पिता रामजीवन, मां राममूर्ति और बहन शालिनी का रो-रो कर बुरा हाल था। अंकित का चेहरा देख कर हर किसी की आंखें भर आईं। कुछ शब्द नहीं थे, बस एक खामोश चीख पूरे गांव में फैल गई। क्षेत्रीय विधायक श्रीकांत कटियार मौके पर पहुंचे, लेकिन उनके पास भी इस त्रासदी के आगे कोई जवाब नहीं था।
पुलिस की शुरुआती जांच में अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि हत्या कैसे की गई। शव की हालत देख कर स्पष्ट है कि हत्या कई दिन पहले हुई, लेकिन हत्या की विधि और कारणों की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही हो सकेगी। सीओ अरविंद चौरसिया ने बताया कि प्रथम दृष्टया यह हत्या किसी करीबी द्वारा की गई प्रतीत हो रही है, जो गांव या आस-पास का ही रहने वाला हो सकता है। पुलिस सभी संभावनाओं की जांच कर रही है, जिसमें आर्थिक लेनदेन और प्रेम प्रसंग के पहलू भी शामिल हैं।
मामले में सबसे बड़ा सवाल पुलिस की भूमिका पर है। जब बाइक मिली थी, तब भी पुलिस ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अगर उस वक्त जांच गंभीरता से होती, तो शायद अंकित की जान बचाई जा सकती थी या कम से कम शव जल्द मिल जाता, जिससे सबूत नष्ट होने से बचते। घटना वाले दिन अंकित का मोबाइल बंद हो गया था और अब पुलिस उसकी कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) निकालने में लगी है। इसके साथ ही सर्विलांस टीम भी सक्रिय हो गई है, लेकिन यह प्रयास अब देर से उठाया गया कदम प्रतीत होता है।
गांववालों का गुस्सा और पीड़ा दोनों साफ झलक रहे हैं। एक युवक, जो रोजमर्रा की जिंदगी में आम लोगों की मदद करता था, जो दवा बांटता था, जो मुस्कराता था। उसका इस तरह से अंत होना, एक गहरी सामाजिक और प्रशासनिक विफलता की कहानी कहता है।
यह घटना केवल अंकित के परिवार की नहीं है, यह हर उस घर की कहानी है, जहां बेटे देर तक घर न लौटें तो मां की आंखें दरवाजे पर टिकी रह जाती हैं। यह हर उस गांव की त्रासदी है, जहां कानून की धीमी चाल, अपराधियों के हौसले को बढ़ा देती है।
अब सवाल सिर्फ यह नहीं है कि अंकित को किसने मारा। सवाल यह भी है कि क्यों मारा गया? किसने उसे पाइप में छिपाया और उसकी पहचान मिटाने की कोशिश की? क्या यह हत्या सुनियोजित थी या किसी तात्कालिक झगड़े का परिणाम? क्या यह किसी करीबी की गद्दारी थी या अजनबी की वहशत।
इन सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं, लेकिन एक सच सामने है। एक बेटे की लाश पांच दिन तक पाइप में सड़ती रही, और प्रशासन उसे तलाशने में लापरवाह बना रहा। अंकित चला गया, लेकिन पीछे छोड़ गया एक सवाल, क्या हम सुरक्षित हैं?
अब देखना यह है कि पुलिस कितनी तेजी से इस मामले में न्याय दिला पाती है और क्या अंकित की मौत को एक उदाहरण बना पाएगी, जिससे अगला अंकित जिंदा रह सके।
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