वाराणसी: शहर के विभिन्न हिस्सों में संचालित मिठाई और नाश्ते की दुकानों, चाय की गुमटियों और ठेलों पर घरेलू रसोई गैस सिलेंडरों का खुलेआम व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है। नियमानुसार व्यापारिक गतिविधियों के लिए व्यावसायिक गैस सिलेंडरों का ही उपयोग अनिवार्य है, किंतु सस्ते और सब्सिडीयुक्त घरेलू सिलेंडरों का लाभ उठाने के लिए अधिकांश दुकानदार इस नियम की खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं। इस गंभीर स्थिति के बावजूद स्थानीय प्रशासन और खाद्य विभाग द्वारा अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे कानून का उल्लंघन बढ़ता ही जा रहा है।
शहर में चौराहों से लेकर बायपास तक फैले छोटे-बड़े व्यवसायी घरेलू गैस सिलेंडरों का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। कई दुकानदार दिखावे के लिए व्यावसायिक सिलेंडर बाहर रखते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर घरेलू सिलेंडर का ही उपयोग करते हैं। नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सब्सिडी प्राप्त सस्ते सिलेंडरों के माध्यम से वे न केवल आर्थिक लाभ ले रहे हैं, बल्कि गंभीर दुर्घटनाओं की आशंका भी बढ़ा रहे हैं। खाद्य विभाग की निष्क्रियता और नियमित निरीक्षण के अभाव में यह प्रवृत्ति तेजी से पैर पसारती जा रही है।
शहर में नाश्ते और मिठाइयों की दुकानों और ठेलों की संख्या 200 से अधिक है, जिनमें से केवल 105 दुकानदार ही व्यावसायिक गैस सिलेंडरों का विधिवत उपयोग कर रहे हैं। शेष दुकानदार सस्ते घरेलू गैस सिलेंडरों के भरोसे अपने कारोबार चला रहे हैं। यही नहीं, कई होटलों में भी घरेलू सिलेंडरों का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। व्यावसायिक गैस सिलेंडर जहां करीब 1950 रुपये में मिलता है, वहीं घरेलू सिलेंडर की कीमत मात्र 916 रुपये के आसपास है, जिससे प्रति किलो गैस लगभग 20 रुपये सस्ती पड़ती है। इसी वजह से व्यवसायी ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में नियमों को ताक पर रख रहे हैं।
खाद्य विभाग के अधिकारी ने कहा है कि अगर कोई व्यापारी घरेलू सिलेंडरों का व्यवसाय में उपयोग कर रहा है तो यह स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है और इस पर कार्रवाई की जाएगी। हालांकि इस बयान के बावजूद शहर में अभी तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं दिखी है, जिससे सवाल उठता है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी या अन्य कारणों से यह समस्या बनी हुई है।
रामनगर क्षेत्र की स्थिति और भी चिंताजनक है, जहां कभी भी खाद्य विभाग की छापेमारी नहीं देखी गई है। सवाल उठता है कि क्या विभाग केवल कागजी खानापूर्ति कर रहा है या फिर किसी दबाव में निष्क्रिय बना हुआ है। जबकि शहर में पहले भी गैस सिलेंडर के कारण कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं और गैस रिफिलिंग का अवैध धंधा भी जोरों पर है, फिर भी बड़े पैमाने पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
इसी बीच एक महत्वपूर्ण उदाहरण उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले से सामने आया है, जिसने इस विषय को और अधिक गंभीर बना दिया है। कौशांबी में घरेलू सिलेंडर के व्यावसायिक उपयोग के मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट दीपक कुमार जयसवाल ने सख्त फैसला सुनाते हुए मिष्ठान भंडार के संचालक नरेश चंद्र गुप्ता को चार साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही दोषी पर 20 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया गया है। यह मामला 3 मई 2008 का है, जब तत्कालीन एसडीएम को सूचना मिली थी कि मंझनपुर चौराहे स्थित शिवम मिष्ठान भंडार में घरेलू गैस सिलेंडर का अवैध उपयोग हो रहा है। मौके पर छापेमारी कर अवैध उपयोग प्रमाणित होने के बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया था, जिसकी सुनवाई के बाद यह सजा सुनाई गई।
इस फैसले ने अन्य दुकानदारों के बीच हड़कंप मचा दिया है और एक स्पष्ट संदेश भी दिया है कि घरेलू गैस सिलेंडरों के व्यावसायिक उपयोग को अब कानून सख्ती से लेगा। बावजूद इसके वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों में इस तरह के अवैध उपयोग पर अब तक कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई है। सवाल यही उठता है कि जब अन्य जिलों में कड़ी कार्रवाई संभव है तो वाराणसी जैसे बड़े और ऐतिहासिक शहर में क्यों नहीं?
शहरवासियों और जिम्मेदार नागरिकों का मानना है कि घरेलू गैस सिलेंडरों के व्यावसायिक उपयोग से न केवल कानून का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि इससे बड़ी दुर्घटनाओं का खतरा भी मंडरा रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि प्रशासन अपनी निष्क्रियता छोड़ते हुए ठोस कार्रवाई करे और दोषियों के खिलाफ तत्काल कदम उठाए। वरना एक छोटी सी चूक बड़े हादसे में बदल सकती है, जिसकी कीमत पूरे शहर को चुकानी पड़ सकती है।
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