नई दिल्ली: यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के जरिए ऑनलाइन लेनदेन करने वाले उपयोगकर्ताओं के लिए एक बड़ी खबर है। अब तक यूपीआई ट्रांजैक्शन पर किसी तरह की फीस नहीं लगती थी, लेकिन अब कंपनियां इस पर फीस वसूलने की तैयारी में हैं। गूगल पे ने इसकी शुरुआत कर दी है और बिजली बिल जमा करने के लिए उपयोगकर्ताओं से 15 रुपये की फीस वसूली है।
यूपीआई के जरिए मोबाइल रिचार्ज करने के लिए पहले से ही कई कंपनियां अलग-अलग नामों से फीस वसूल रही हैं। लेकिन अब यह फीस सिर्फ मोबाइल रिचार्ज तक सीमित नहीं रहने वाली है। गूगल पे ने बिजली बिल जमा करने के लिए कन्वीनियंस फीस के नाम पर 15 रुपये की फीस ली है। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह फीस क्रेडिट कार्ड के जरिए किए गए भुगतान पर लगाई गई है। गूगल पे ने इसे डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शन के लिए प्रोसेसिंग फीस बताया है, जिसमें जीएसटी भी शामिल है।
यूपीआई आज भारतीयों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। एक व्यक्ति रोजाना औसतन 60 से 80 प्रतिशत लेनदेन यूपीआई के जरिए कर रहा है। देश में रोजाना करोड़ों यूपीआई ट्रांजैक्शन हो रहे हैं, जिनके जरिए सैकड़ों करोड़ रुपये का लेनदेन होता है। पेटीएम, गूगल पे और फोनपे जैसे ऐप्स यूपीआई पेमेंट के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं। अब तक ये कंपनियां यूपीआई ट्रांजैक्शन पर कोई फीस नहीं लेती थीं, लेकिन अब स्थिति बदल सकती है।
यूपीआई का इस्तेमाल सिर्फ दुकानों पर खरीदारी के लिए ही नहीं, बल्कि कई अन्य सेवाओं के लिए भी किया जा रहा है। आज के समय में लोग पेट्रोल-डीजल, मोबाइल रिचार्ज, डीटीएच रिचार्ज, बिल पेमेंट, रेलवे और फ्लाइट टिकट बुकिंग, मूवी टिकट, फास्टैग रिचार्ज, गैस बुकिंग, मनी ट्रांसफर, मेट्रो कार्ड रिचार्ज और इंश्योरेंस प्रीमियम जैसी सेवाओं के लिए यूपीआई का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। अब इन सेवाओं पर भी फीस लग सकती है।
यूपीआई पर फीस लगने से उपयोगकर्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ सकता है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह फीस सभी ट्रांजैक्शन पर लागू होगी या सिर्फ कुछ विशेष सेवाओं पर। गूगल पे ने जो कदम उठाया है, वह इस दिशा में पहला कदम माना जा रहा है। अन्य कंपनियां भी इसी रास्ते पर चल सकती हैं।
जब यूपी खबर ने वित्तीय विशेषज्ञ डॉक्टर संगीता श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने बताया कि यूपीआई पर फीस लगाने का फैसला कंपनियों के लिए एक नया राजस्व स्रोत बन सकता है। हालांकि, इससे उपयोगकर्ताओं के बीच असंतोष भी पैदा हो सकता है, क्योंकि यूपीआई की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण इसकी मुफ्त सेवा थी।
अगर यह ट्रेंड जारी रहता है, तो भविष्य में यूपीआई ट्रांजैक्शन पर फीस लगना आम बात हो सकती है। उपयोगकर्ताओं को इसके लिए तैयार रहना चाहिए और अपने लेनदेन के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए।
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