वाराणसी: भारत की प्राचीन विद्वत परंपरा के अद्वितीय संवाहक, वेदशास्त्रों के मर्मज्ञ आचार्य गणेश्वर शास्त्री को देश के राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने पद्म श्री सम्मान से अलंकृत किया। इस ऐतिहासिक सम्मान के साथ संपूर्ण काशी सहित श्री वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय तथा श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा में उल्लास और गर्व का वातावरण व्याप्त है। रामघाट स्थित इस प्रतिष्ठित संस्थान के शास्त्री, जिन्होंने वेद एवं शास्त्र विद्याओं में असाधारण योगदान दिया है, आज राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विलक्षण प्रतिभा और साधना के लिए पहचान बना चुके हैं।
गणेश्वर शास्त्री का जीवन एक आदर्श गुरुकुल परंपरा के निर्वहन का सजीव उदाहरण रहा है। उन्होंने अपने पूज्य पिता, पद्मभूषण पंडितराज राजेश्वर शास्त्री द्राविड से वेदशास्त्रों की गहन शिक्षा प्राप्त की और उसी परंपरा के अनुरूप अपने जीवन को विद्याव्रत एवं सतत ज्ञानदान के पथ पर समर्पित किया। असंख्य विद्यार्थियों को उन्होंने निःस्वार्थ भाव से विद्यादान करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने का कार्य किया।
गणेश्वर शास्त्री का योगदान केवल शिक्षा तक सीमित नहीं रहा, अपितु राष्ट्रीय धार्मिक आयोजनों में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के शिलान्यास के अवसर पर शास्त्रीजी ने 32 सेकंड का सूक्ष्मतम मुहूर्त निर्धारित किया था, जिसे विश्वभर के करोड़ों श्रद्धालुओं ने ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखा। इसके साथ ही, भव्य श्रीरामलला मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा हेतु भी उन्होंने 84 सेकंड का श्रेष्ठतम मुहूर्त प्रदान किया था। इन शुभ अवसरों के चयन ने मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को अध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ और दिव्य बनाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, गणेश्वर शास्त्री द्वारा निर्दिष्ट मुहूर्तों के अनुरूप, अल्प समय में नव्य और भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हुआ। भगवान श्रीरामलला की प्रतिष्ठा भी अत्यंत विधिपूर्वक संपन्न हुई, जिससे करोड़ों भारतीयों की आस्था को एक नया संबल प्राप्त हुआ। गणेश्वर शास्त्री का योगदान इस संपूर्ण प्रक्रिया में न केवल एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में रहा, बल्कि उन्होंने प्राचीन भारतीय कालगणना विज्ञान की अद्भुत क्षमता का भी परिचय दिया।
गत लोकसभा चुनावों में भी गणेश्वर शास्त्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक रहे थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका स्थान केवल धार्मिक जगत में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना के व्यापक स्तर पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनका जीवन, सेवा और साधना आज की पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। पद्म श्री सम्मान के माध्यम से न केवल गणेश्वर शास्त्री का, बल्कि भारत की प्राचीन विद्वत परंपरा का भी सम्मान हुआ है।
काशी जैसे प्राचीन ज्ञान और संस्कृति के केंद्र से जुड़े गणेश्वर शास्त्री का यह सम्मान आने वाली पीढ़ियों को भारतीय सनातन विद्या परंपरा के संरक्षण और संवर्धन के लिए सतत प्रेरित करता रहेगा। उनके इस अनुपम योगदान को शब्दों में समेटना कठिन है, परंतु राष्ट्र ने आज उनके प्रति अपनी कृतज्ञता और सम्मान को सर्वोच्च मंच से अभिव्यक्त किया है।
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