वाराणसी: शंकुलधारा पोखरे में हुआ अक्षय कन्यादान महोत्सव, मोहन भागवत ने निभाई पिता की भूमिका

शंकुलधारा पोखरे पर आयोजित अक्षय कन्यादान महोत्सव में मोहन भागवत ने वनवासी कन्या रजवंती का कन्यादान कर सामाजिक समरसता का प्रतीक प्रस्तुत किया, जिसमें 125 वेदियों पर विभिन्न समाजों ने भाग लिया।

Wed, 30 Apr 2025 20:24:47 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: शंकुलधारा पोखरे पर रविवार को आयोजित भव्य अक्षय कन्यादान महोत्सव ने सामाजिक समरसता और परंपरा की मिसाल पेश की। इस अनूठे आयोजन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने स्वयं को बेटी के पिता की भूमिका में स्थापित करते हुए एक वनवासी कन्या रजवंती का कन्यादान किया। यह आयोजन सिर्फ एक विवाह नहीं बल्कि समाज के विभिन्न तबकों को जोड़ने वाला प्रतीक बन गया, जहां संस्कृति, सेवा और समर्पण एक साथ नज़र आए।

महोत्सव में सोनभद्र जिले की जोगीडीह ग्राम की निवासी रजवंती का विवाह रेणुकूट निवासी आदिवासी युवक अमन के साथ संपन्न हुआ। मोहन भागवत ने विवाह की सभी धार्मिक परंपराओं का विधिपूर्वक निर्वहन किया। उन्होंने कन्या पूजन किया, उसके पांव पखारे और कन्यादान संस्कार निभाया। इस दौरान वे पारंपरिक वेशभूषा में नज़र आए, सफेद कुर्ता, पीली धोती और कंधे पर पीले रंग का गमछा, जो उनकी सादगी और संस्कृति के प्रति सम्मान का प्रतीक था।

पूरे आयोजन में 125 वेदियां बनाई गई थीं, जहां विभिन्न समाजों के लोगों ने कन्यादान संस्कार किया। यह नजारा किसी यज्ञ मंडप से कम नहीं था, जहां पवित्र मंत्रों की गूंज और सामाजिक सहभागिता ने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। इससे पहले अपराह्न 4 बजे, द्वारकाधीश मंदिर से शुरू हुई बारात में 125 दूल्हों ने पारंपरिक घोड़े, गाड़ियां और बग्घियों पर सवार होकर विवाह स्थल के लिए प्रस्थान किया। बारात में शामिल परिजन और समाजजन बैंड-बाजे, आतिशबाजी और नृत्य के साथ उत्साहपूर्वक आगे बढ़ते रहे।

किरहिया चौराहा, चुंगी, गांधी चौक और दाह चौक होते हुए बारात शंकुलधारा पोखरे पर पहुंची, जहां मुख्य यजमान वीरेंद्र जायसवाल के पूजावा बाजार स्थित आवास के बाहर मोहन भागवत ने बारात का स्वागत किया। स्थानीय व्यापारियों ने जगह-जगह फूल-मालाओं से स्वागत किया और जलपान की विशेष व्यवस्था कर अतिथियों का सत्कार किया।

शाम 5:30 बजे जैसे ही बारात विवाह स्थल पर पहुंची, वहां उपस्थित महिलाओं ने पारंपरिक रीति से परछन कर दूल्हों का स्वागत किया। ठीक 6:15 बजे, आचार्यों द्वारा विवाह पूजन की विधियां आरंभ की गईं। धार्मिक अनुष्ठानों के पूर्ण होने के बाद नवविवाहित युगलों को आशीर्वाद स्वरूप जीवनोपयोगी उपहार, साइकिलें, सिलाई मशीनें, वस्त्र, आभूषण, नकदी और मिष्ठान प्रदान किए गए, जो इस आयोजन की सामाजिक दृष्टि को और अधिक स्पष्ट करता है।

इस महोत्सव ने एक ओर जहां वैदिक परंपरा और सामाजिक उत्तरदायित्व का समन्वय दिखाया, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक द्वारा निभाई गई ‘पिता’ की भूमिका ने समाज में एक गहरी सकारात्मक छाप छोड़ी। यह आयोजन निश्चित रूप से उस विचार को साकार करता है जिसमें समाज का हर वर्ग, हर व्यक्ति समान रूप से भागीदार और उत्तरदायी है।

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