Tue, 27 May 2025 21:06:58 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: ठेला और पटरी पर कारोबार करने वाले दर्जनों व्यापारियों का आक्रोश सोमवार को नगर निगम मुख्यालय पर फूट पड़ा, जब वे पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठाने नगर आयुक्त अक्षत वर्मा के दफ्तर के बाहर एकत्र हो गए। हाथों में मांगों से भरी तख्तियां लिए और नारों के साथ धरना दे रहे इन व्यापारियों का कहना था कि पुलिस की आए दिन की मारपीट ने उनके लिए सड़कों पर सम्मानजनक तरीके से रोज़ी-रोटी कमाना मुश्किल कर दिया है।
इस विरोध की चिंगारी उस घटना से भड़की जिसमें पांच दिन पहले पांडेयपुर क्षेत्र में एक पुलिसकर्मी ने फल विक्रेता को डंडे से पीट दिया था। गंभीर रूप से घायल फल विक्रेता को तत्काल अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, और इसी के बाद पूरे शहर के स्ट्रीट वेंडर्स में आक्रोश फैल गया। प्रदर्शन कर रहे कारोबारियों का कहना था कि यह कोई पहली घटना नहीं है—अक्सर पुलिस बिना किसी चेतावनी के ठेला-पटरी वालों को मारती है, उनका सामान तोड़ती है और उनके साथ अपमानजनक व्यवहार करती है।
नगर निगम मुख्यालय के बाहर हुए इस विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रीय फेरी पटरी ठेला व्यवसायी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक निगम, अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद सिंह, कार्यवाहक अध्यक्ष हरिशंकर सिंह, डॉ. गौरव प्रकाश, अनमोल निगम, नूर मोहम्मद, प्रकाश सोनकर, विजय यादव, इंदु सोनकर, पूजा रामलख्यानी और अन्य दर्जनों व्यापारी शामिल रहे। इन सभी ने नगर आयुक्त से मिलने की जिद की, परंतु नगर विकास मंत्री की बैठक में व्यस्त होने के कारण अक्षत वर्मा ने फोन पर जनसुनवाई प्रभारी शिखा मौर्य के माध्यम से संवाद किया और बुधवार को वार्ता का आश्वासन दिया।
व्यापारियों ने अपनी मांगों का एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें मुख्यतः तीन बड़े मुद्दों को रेखांकित किया गया। पहली मांग चौकाघाट से लहरतारा फ्लाईओवर के नीचे स्थित नाइट मार्केट से जुड़ी थी, जहां स्टेशन के सामने मांसाहारी रेस्टोरेंट्स द्वारा अव्यवस्थित तरीके से मांस अपशिष्ट फेंका जाता है। उनका आरोप था कि यह न सिर्फ सफाई व्यवस्था को प्रभावित करता है बल्कि धार्मिक नगरी काशी की छवि को भी ठेस पहुंचाता है। व्यापारियों ने इन दुकानों को बंद करने की मांग के साथ बिजली, पानी और स्वच्छता की समुचित व्यवस्था की भी मांग की।
दूसरी मांग यह थी कि जिन स्थानों पर पटरी व्यवसायियों को स्थापित किया गया है, वहां नगर निगम द्वारा डिजिटल प्रणाली से वेंडिंग शुल्क वसूला जाए और उन्हें पहचान पत्र प्रदान किए जाएं, जिससे उनके अधिकार सुनिश्चित किए जा सकें। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण मांग थी कि जिन 52 वेडिंग जोनों का प्रस्ताव पुलिस प्रशासन द्वारा दिया गया है, उन स्थानों की नए सिरे से समीक्षा की जाए। इसके लिए एक समिति गठित करने का सुझाव दिया गया, जिसमें ट्रैफिक पुलिस, जोनल अधिकारी और व्यापारी संगठन के प्रतिनिधि शामिल हों, ताकि निष्पक्ष मूल्यांकन के आधार पर ही स्थल निर्धारित किए जाएं।
व्यापारियों का यह भी कहना था कि वे किसी भी अव्यवस्था के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन उन्हें बार-बार अपराधी जैसा व्यवहार झेलना पड़ता है। उनके अनुसार, सड़कों पर मेहनत से जीवन यापन करने वाले लोगों को यदि इस तरह का उत्पीड़न झेलना पड़ेगा, तो उनके जीवन स्तर में सुधार की बात करना ही व्यर्थ है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि नगर निगम और पुलिस प्रशासन द्वारा ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करने को विवश होंगे।
नगर निगम परिसर में कुछ घंटों तक चली यह शांति पूर्ण लेकिन दृढ़ प्रतिरोध की तस्वीरें साफ़ दर्शाती हैं कि शहर का एक बड़ा वर्ग प्रशासनिक उपेक्षा और पुलिसिया सख्ती के बीच फंसा हुआ है। अब निगाहें बुधवार की तय बैठक पर टिकी हैं, जिसमें नगर आयुक्त द्वारा व्यापारियों से वार्ता कर समाधान का आश्वासन दिया गया है।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि शहरों के विकास की बात करने से पहले उन लोगों की आवाज़ सुनना आवश्यक है, जो उस शहर की जीवन रेखा को कायम रखते हैं।चाहे वे सड़क किनारे फल बेच रहे हों, चाय का ठेला लगाए हों या सब्जियां। इन्हें सिर्फ लाइसेंस ही नहीं, सम्मान और सुरक्षा भी चाहिए।