Mon, 19 May 2025 15:31:35 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: रामनगर/प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र की यह तस्वीर स्वच्छता मिशन को करारा तमाचा जड़ती है। वार्ड नंबर 65, पुराना रामनगर में स्थित सामनेघाट पुल के नीचे नगर निगम ने खुद कचरे का अड्डा बना दिया है। यह इलाका अब "कूड़े का किला" बन चुका है, जहां न तो शासन की पहुंच है और न ही प्रशासन की सुध।
जहां होना चाहिए स्वच्छता, वहीं है गंदगी का साम्राज्य
यह स्थान कोई मामूली जगह नहीं है। महज़ कुछ कदम की दूरी पर देश के दूसरे प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी का आवास और प्रतिमा स्थित है। इसी रास्ते से काशी के प्राचीन किले और काशी नरेश के आवास तक पहुंच होती है। जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और देशी-विदेशी पर्यटक इसी मार्ग से मां गंगा में स्नान के लिए और यहां घूमने आते हैं। ऐसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थल के पास गंदगी का यह दृश्य केवल शर्मनाक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी का कारण बन सकता है।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने उठाई आवाज, फिर भी खामोश है प्रशासन
वर्तमान पार्षद रामकुमार यादव ने इस गंभीर समस्या को लेकर नगर आयुक्त से शिकायत की, लेकिन "क्रिया-प्रक्रिया" के नाम पर कोई हलचल नहीं हुई।
भूतपूर्व भाजपा सभासद संतोष शर्मा ने भी कई बार इस विषय में प्रशासन को जगाने की कोशिश की, लेकिन नतीजा वही "ढाक के तीन पात"।
जनता त्रस्त, गुस्से में आम लोग
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि गंदगी की वजह से अब इस रास्ते पर चलना भी मुश्किल हो गया है। बदबू, मच्छरों और कूड़े से उठती दुर्गंध के कारण बीमारियां फैल रही हैं। खासकर बच्चे और बुजुर्ग इस प्रदूषण के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। लोगों में आक्रोश है और अब यह गुस्सा सड़कों पर उतर सकता है।
प्रशासन से तीखे सवाल:
1. क्या स्वच्छ भारत अभियान सिर्फ दिखावा है?
2. क्या वाराणसी जैसे ऐतिहासिक और धार्मिक शहर की छवि को यूं ही नष्ट किया जाएगा?
3. क्यों नगर निगम की गाड़ियां खुलेआम यहां कूड़ा फेंक रही हैं, और कोई रोक नहीं?
यूपी खबर की प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से अपील :
नगर आयुक्त, जिलाधिकारी, और राज्य सरकार से मांग है कि इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाए। तत्काल प्रभाव से कूड़ा हटवाया जाए, जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो और भविष्य में इस क्षेत्र में कचरा न डाला जाए — इसकी ठोस योजना बनाई जाए।
यह खबर सिर्फ एक गली की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सुस्त रफ्तार की गवाही है। अगर अब भी आंखें न खोली गईं, तो जनता का गुस्सा सड़कों पर होगा, और तब सवाल सिर्फ सफाई का नहीं, जवाबदेही का होगा।