वाराणसी: गंगा आरती के दौरान दर्दनाक हादसा, पति गंगा में डूबा, देखती रही पत्नी

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती के दौरान देवरिया से आए नंदन मणि त्रिपाठी नामक एक व्यक्ति अपनी पत्नी के सामने गंगा में डूब गए, जिससे घाट पर मातम छा गया।

Sun, 15 Jun 2025 19:45:38 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: काशी जो श्रद्धा, आध्यात्म और मोक्ष की भूमि मानी जाती है, शनिवार की रात एक ऐसी त्रासदी की साक्षी बनी जिसने वहां उपस्थित हर श्रद्धालु की आत्मा को झकझोर दिया। गंगा की शांत धारा में आरती के दिव्य स्वर गूंज रहे थे, हजारों आंखें टकटकी लगाए गंगा आरती की भव्यता को निहार रही थीं। लेकिन इसी आरती के दृश्य के बीच एक हृदयविदारक क्षण ने सब कुछ बदल दिया।

प्राप्त जानकारी के अनुसार शाम 7:30 बजे, देवरिया जिले के भवहा गांव से आए 32 वर्षीय नंदन मणि त्रिपाठी अपनी पत्नी दीक्षा मिश्रा के साथ दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती देख रहे थे। दोनों एक बजड़े (फ्लोटिंग बोट) पर सवार होकर इस अद्भुत क्षण को संजोने आए थे। यह उनकी शादी की पहली सालगिरह का खास अवसर था। एक ऐसा दिन जिसे वे जीवन भर याद रखना चाहते थे। पर नियति को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। आरती के मंत्रोच्चार, शंखध्वनि और दीपों की रौशनी के बीच अचानक नंदन मणि त्रिपाठी गंगा में गिर पड़े। चीख-पुकार मच गई, घाट पर अफरा-तफरी फैल गई, और दीक्षा की आंखों के सामने उसका सुहाग काल की धार में समा गया।

स्थानीय गोताखोरों और एनडीआरएफ की टीम ने रात 11 बजे तक गंगा की गहराइयों को छान मारा, लेकिन नंदन का कोई सुराग न मिला। रविवार सुबह एक बार फिर खोजबीन शुरू हुई। केदार घाट, राजघाट और दशाश्वमेध घाट के अनुभवी नाविकों की टीम ने करीब चार घंटे तक अथक प्रयास किया, पर गंगा तब भी मौन थी।

और फिर दोपहर करीब 3:30 बजे, जब धूप थोड़ी तीव्र हो चली थी और घाट पर श्रद्धालुओं की चहल-पहल फिर से लौटने लगी थी, तभी गंगा ने वह देह वापस कर दी जो एक दिन पहले उसमें समा गई थी। नंदन मणि त्रिपाठी का शव पानी की सतह पर आ गया। जीवन की सारी उमंगें, सारी आकांक्षाएं उस निष्प्राण शरीर के साथ ही बह गई थीं।

पोस्टमार्टम के लिए शव को कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल भेज दिया गया है। इस पूरे घटनाक्रम ने घाट पर मौजूद सभी लोगों को भीतर तक झकझोर दिया। नंदन, नोएडा की एक निजी फाइनेंस कंपनी में कार्यरत थे और अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। विवाह को अभी मात्र एक वर्ष ही बीता था। 24 अप्रैल को दोनों का विवाह हुआ था। इस त्रासदी ने एक नवविवाहित जोड़े के सपनों को गंगा की लहरों में समेट दिया।

शोकाकुल दीक्षा की पीड़ा शब्दों से परे थी। उनके साथ-साथ दोनों पक्षों के परिजन वाराणसी पहुंचे, लेकिन किसी ने भी मीडिया से कोई बात नहीं की। शोक की चुप्पी में उनकी आंखों से बहते आंसू ही बयान कर रहे थे कि उन्होंने क्या खो दिया है।

इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या गंगा आरती जैसे विशाल आयोजनों में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम होते हैं? क्या बजड़े पर मौजूद लोगों के लिए कोई लाइफ सेफ्टी उपाय अनिवार्य नहीं होने चाहिए?

वाराणसी की इस हृदय विदारक घटना ने एक बार फिर यह एहसास कराया है कि जीवन क्षणभंगुर है। जो पल आज आंखों में चमक है, वही कल अश्रु बन कर बह सकता है। गंगा, जो जननी मानी जाती है, वह इस बार किसी का जीवन नहीं, बल्कि जीवन का सब कुछ अपने साथ बहा ले गई।

नंदन मणि त्रिपाठी अब नहीं रहे, पर उनकी यह आखिरी शाम दीपों की रोशनी, मंत्रों की ध्वनि, और पावन गंगा के बीच एक अलौकिक विदाई, उन्हें अमर बना गई।

सौजन्य: न्यूज रिपोर्ट

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