वाराणसी: बंदरों के आतंक से मासूम की दर्दनाक मौत, प्रशासन पर उठे सवाल, स्थायी समाधान की मांग

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Wed, 15 Jan 2025 13:31:00 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: बंदरों के बढ़ते आतंक ने वाराणसी में एक और मासूम की जान ले ली। पांच वर्षीय बालक की दर्दनाक मौत ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना शहर के रोहनिया थाना क्षेत्र के बच्छाव इलाके की है, जहां छत पर खेलते समय एक बंदर के कारण ये घटना मासूम घटित हुई है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार रोहनिया के बच्छाव निवासी मन्नू चौरसिया का 5वर्षीय बच्चा देवांश सोमवार को शाम में अपने घर के छत पर खेल रहा था, जब अचानक वहां एक बंदर आ पहुंचा मासूम देवांश बंदर को देख कर डर के मारे सीढ़ियों की तरफ दौड़ा हड़बड़ाहट में उसके पांव सही से सीढ़ी पर नहीं पड़े और मासूम बच्चा सीढ़ियों से नीचे गिर कर गंभीर रूप से घायल हो गया। बच्चे के चीखने की आवाज सुनकर परिजन भागे, लेकिन तब तक काफी देर हो गई। बच्चे को बुरी तरह घायल अवस्था में इलाज के लिए परिजन अस्पताल ले कर भागे, जहां डॉक्टरों ने मासूम देवांश को मृत घोषित कर दिया। यह घटना पूरे इलाके में भय और आक्रोश का कारण बन गई है।

घटना के बाद स्थानीय निवासियों ने प्रशासन के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि बंदरों के आतंक की समस्या कोई नई नहीं है। बंदरों के झुंड अक्सर बच्चों और बुजुर्गों को अपना शिकार बनाते हैं। लोगों ने प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाते हुए मांग की है कि बंदरों के प्रकोप को रोकने के लिए तुरंत सख्त कदम उठाए जाएं।

इस दर्दनाक घटना के बाद वन विभाग और नगर निगम हरकत में आए हैं। अधिकारियों ने बंदरों को पकड़ने के लिए एक विशेष अभियान शुरू करने की घोषणा की है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि केवल अस्थायी कदम उठाने से समस्या का समाधान नहीं होगा। जानकारों का मानना है कि बंदरों का तेजी से बढ़ता प्रकोप वन्यजीव प्रबंधन में लापरवाही का परिणाम है। प्राकृतिक आवास के कम होने और भोजन की कमी के कारण बंदर शहरी इलाकों का रुख कर रहे हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि बंदरों की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं।

यह घटना प्रशासन और समाज दोनों के लिए एक चेतावनी है। बंदरों के आतंक को रोकने के लिए एक दीर्घकालिक योजना की जरूरत है, जिसमें वन्यजीव प्रबंधन, जन जागरूकता और ठोस कार्रवाई शामिल हो।शहरवासियों ने प्रशासन से अपील की है कि वह इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए बंदरों के आतंक पर स्थायी रूप से अंकुश लगाए। उनका कहना है कि अब और मासूमों की जान जाने से पहले कदम उठाना बेहद जरूरी है। यह घटना सिर्फ एक बच्चा खोने की नहीं, बल्कि प्रशासन की लापरवाही और शहरी इलाकों में बढ़ते वन्यजीव संकट की एक बड़ी चेतावनी है।

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