वाराणसी: मुकेश चौहान की मौत के बाद गोलाघाट में इंसाफ की मांग, विधायक के आश्वासन पर थमा चक्काजाम

वाराणसी के रामनगर में मुकेश चौहान की मौत के बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा, गोलाघाट में चक्काजाम, परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने मामले में ढिलाई बरती थी।

Mon, 02 Jun 2025 11:45:58 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: रामनगर/ एक बेटे की मौत, एक मां का टूटा सपना और एक मोहल्ले की गूंजती चीखें… रामनगर का गोलाघाट आज सिर्फ एक इलाका नहीं, बल्कि इंसाफ की जंग का मैदान बन चुका है। 24 वर्षीय गरीब पेंटर मुकेश चौहान की दर्दनाक मौत ने पूरे वाराणसी को झकझोर कर रख दिया है।

आपको बताते चलें कि 10 मई की रात मुकेश चौहान अपनी बीमार मां के लिए दवा लाने घर से निकले थे, लेकिन उस रात वह फिर कभी लौटकर नहीं आए। अगले दिन वह लहूलुहान हालत में अस्पताल में मिले। होश आने पर उन्होंने बताया कि मोहल्ले के कुछ लोगों ने घात लगाकर उन पर जानलेवा हमला किया और मारने के बाद फेंकने तक की बात कही।

लगभग तीन हफ्ते तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद आज सुबह करीब 4 बजे मुकेश ने बीएचयू ट्रॉमा सेंटर में अंतिम सांस ली। जैसे ही यह दुखद खबर मोहल्ले में पहुंची, वहां मातम के साथ आक्रोश फूट पड़ा।

परिजन और स्थानीय नागरिक रामनगर चौक पर इकट्ठा हो गए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर चक्काजाम कर दिया। यह चौक रामनगर थाने के समीप स्थित है और पूरे इलाके का सबसे व्यस्त मार्ग है। देखते ही देखते सड़क के दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग गईं।

लोगों का आरोप था कि पुलिस ने इस मामले में न सिर्फ ढिलाई बरती, बल्कि प्रभावशाली आरोपियों को बचाने का भी प्रयास किया गया। परिजनों ने कहा कि पहले भी धमकियां दी गई थीं, लेकिन पुलिस ने ध्यान नहीं दिया।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय विधायक सौरभ श्रीवास्तव मौके पर पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवार से मिलकर संवेदना व्यक्त की और पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सख्त नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “यह घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने वरिष्ठ अधिकारियों से बात की है और निर्देश दिए हैं कि दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा न जाए। पीड़ित परिवार को हर संभव न्याय दिलाना हमारी प्राथमिकता है।”

विधायक के आश्वासन और निवेदन के बाद परिजनों व स्थानीय लोगों ने चक्काजाम समाप्त किया। इसके साथ ही सड़क पर सामान्य यातायात बहाल हो सका, लेकिन मोहल्ले में अब भी ग़म और ग़ुस्से की लहर बह रही है।

मुकेश की मां बेसुध हैं, आंखों से आंसू नहीं रुकते। पूरे मोहल्ले की आंखें नम हैं और हर किसी के दिल में एक ही सवाल, क्या अब वाकई न्याय मिलेगा?

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर समाज, प्रशासन और शासन से सवाल किया है, कि गरीबों की जान की कीमत कब तय होगी? क्या इंसाफ अब भी रसूखदारों की मुट्ठी में कैद रहेगा या एक मजदूर बेटे को भी मिलेगा न्याय?

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सौजन्य से – न्यूज़ रिपोर्ट

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