काशी बनी जीआई की राजधानी, उत्तर प्रदेश बना जीआई सम्राट, 21 उत्पादों को मिला जीआई टैग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी दौरे पर उत्तर प्रदेश के 21 पारंपरिक उत्पादों को जीआई टैग देकर प्रदेश को जीआई हब बनाया, जिससे यूपी 77 जीआई टैग के साथ भारत में प्रथम स्थान पर है और काशी दुनिया का सबसे बड़ा जीआई हब बन गया है।

Fri, 11 Apr 2025 20:36:29 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: उत्तर प्रदेश की माटी से उठती हर कला, हर स्वाद, अब विश्व के मानचित्र पर चमक बिखेरने को तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वाराणसी दौरे पर शुक्रवार को जो ऐतिहासिक उपहार प्रदेश को दिया, उसने न सिर्फ कारीगरों के सपनों को पंख दिए, बल्कि यूपी को ‘जीआई हब’ की अनूठी पहचान भी दिला दी। प्रदेश के 21 पारंपरिक उत्पादों को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग का प्रमाण पत्र देकर देश-दुनिया को यह संदेश दिया गया कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा उत्तर प्रदेश में बसती है।

काशी बना GI की राजधानी, यूपी बना GI सम्राट

77 GI टैग उत्पादों के साथ उत्तर प्रदेश आज पूरे भारत में प्रथम स्थान पर है। और जब बात काशी की हो, तो वहां की चमक अलग ही होती है—यह क्षेत्र 32 GI टैग उत्पादों के साथ अकेले दुनिया का सबसे बड़ा GI हब बन चुका है। यह न सिर्फ सांस्कृतिक गौरव की बात है, बल्कि ये टैग एक आर्थिक क्रांति की शुरुआत हैं—जो कारीगरों, किसानों और छोटे उद्यमियों के जीवन में बड़ा बदलाव लाएंगे।

बनारसी तबला और भरवा मिर्च: संगीत और स्वाद का GI संगम

बनारस का तबला—जिसकी थाप ने शास्त्रीय संगीत को आत्मा दी है, और बनारसी भरवा मिर्च—जिसके स्वाद में घर की यादें बसती हैं, अब GI टैग से सुसज्जित हो गए हैं। ये महज़ उत्पाद नहीं, बनारस की आत्मा हैं। ये टैग अब इन्हें कानूनी संरक्षण, पहचान और वैश्विक बाजार में नई ऊंचाई देंगे।

शहनाई की गूंज, लाल पेड़े की मिठास, और ठंडाई की ठंडक अब अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड

काशी के अन्य उत्पादों—शहनाई, मेटल कास्टिंग क्राफ्ट, लाल पेड़ा, तिरंगी बर्फी, ठंडाई और म्यूरल पेंटिंग को भी GI टैग मिला है। इन पारंपरिक धरोहरों को अब दुनिया एक ब्रांड के रूप में पहचानेगी। ये वो कलात्मक झरोखे हैं, जिनसे भारत की आत्मा झांकती है।

सांझी क्राफ्ट से बांसुरी तक: हर कोना बोलेगा ‘मेरा भी नाम है’

मथुरा की सांझी क्राफ्ट, बुंदेलखंड का काठिया गेहूं, पीलीभीत की बांसुरी, बरेली का फर्नीचर, जरी-जरदोजी, और टेराकोटा... अब ये सब GI टैग की मुहर के साथ बाजार में कदम रखेंगे। ये वो कलाएं हैं जो पीढ़ियों से सहेजी गई हैं, और अब इन्हें अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों तक पहुंचाने का रास्ता खुला है।

चित्रकूट की लकड़ी, आगरा की नक्काशी, और जौनपुर की इमरती की भी हुई ‘ग्लोबल ब्रांडिंग’

उत्तर प्रदेश के हर कोने से निकली कारीगरी की कहानी अब अंतरराष्ट्रीय पन्नों पर लिखी जाएगी। चित्रकूट का वुड क्राफ्ट, आगरा का स्टोन इनले वर्क, और जौनपुर की इमरती—हर एक उत्पाद एक संस्कृति, एक परंपरा की जीवंत मिसाल है। GI टैग अब इन्हें वह मुकाम देगा, जिसकी वर्षों से प्रतीक्षा थी।

डॉ. रजनीकांत की GI यात्रा और योगी सरकार की विजन नीति

GI विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार, यह सिर्फ टैग नहीं, बल्कि 2 करोड़ लोगों के जीवन और 25,500 करोड़ रुपये के वार्षिक कारोबार की नींव है। योगी सरकार की ‘एक जिला, एक उत्पाद (ODOP)’ नीति ने इस बदलाव की गति को रफ्तार दी है।

GI टैग: पहचान भी, संभावना भी

GI टैग से उत्पादों की मौलिकता सुनिश्चित होती है, बाजार में मूल्य बढ़ता है, और सबसे बड़ी बात—कारीगरों व किसानों को सीधा लाभ मिलता है। यह न सिर्फ रोजगार बढ़ाता है, बल्कि क्षेत्रीय विकास को नया आधार देता है।

उतरता सूरज अब नहीं, उगता उत्तर प्रदेश है नाम

उत्तर प्रदेश अब न केवल देश की सांस्कृतिक आत्मा है, बल्कि GI टैग्स के जरिए आर्थिक उन्नयन का मॉडल भी बन चुका है। यह खबर सिर्फ एक सरकारी कार्यक्रम की नहीं, यह कहानी है एक प्रदेश के पुनर्जागरण की—जहाँ परंपरा और प्रगति एक साथ कदम मिला रहे हैं।

UP खबर के लिए विशेष रिपोर्ट: एक गौरवगाथा जो हर उत्तर भारतीय को गर्व से भर दे।

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