वाराणसी: आंगनबाड़ी भर्ती में फर्जीवाड़े का खुलासा, आठ कार्यकत्रियों की नियुक्ति पर तत्काल रोक

वाराणसी में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की भर्ती में फर्जी प्रमाणपत्रों के इस्तेमाल का मामला सामने आया है, जिसके चलते प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से आठ नियुक्तियों को रद्द कर दिया है और जांच के आदेश दिए हैं।

Wed, 16 Apr 2025 17:07:44 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: जिले में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की भर्ती प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं का मामला सामने आया है। प्रशासन ने हाल ही में नियुक्त की गई आठ आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से रोक दिया है। इन महिलाओं पर आरोप है कि इन्होंने फर्जी प्रमाणपत्रों के बल पर नौकरी हासिल करने का प्रयास किया। इसके चलते जिला प्रशासन ने सभी संदिग्ध मामलों की जांच शुरू कर दी है और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की तैयारी की जा रही है।

आरोप है कि इन आठ महिलाओं ने बीपीएल और निवास प्रमाणपत्रों में फर्जी जानकारी प्रस्तुत कर चयन प्रक्रिया में स्थान प्राप्त किया। इनमें से सात महिलाएं सदर तहसील क्षेत्र से और एक महिला पिंडरा तहसील से संबंधित है। दोनों तहसीलों के प्रशासनिक अधिकारियों को इन मामलों की गहन जांच के निर्देश दिए गए हैं। दस्तावेजों की वैधता की पुष्टि के लिए स्थलीय सत्यापन भी कराया जा रहा है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिन प्रमाणपत्रों के आधार पर चयन हुआ, वे असली हैं या नहीं।

जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) डीके सिंह ने बताया कि इन आठ नियुक्तियों को लेकर आईजीआरएस पोर्टल और बाल विकास विभाग के कार्यालय में शिकायतें दर्ज की गई थीं। शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कुछ महिलाओं ने तहसील अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी प्रमाणपत्र तैयार कराए और उसी के आधार पर नौकरी हासिल की। कुल आठ मामलों में से पांच मामले फर्जी निवास प्रमाणपत्रों से जुड़े हैं जबकि तीन मामलों में फर्जी आय प्रमाणपत्रों की बात सामने आई है। इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए जांच प्रक्रिया प्रारंभ की गई है और संबंधित विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि यदि कोई दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ न सिर्फ नियुक्ति रद्द की जाएगी, बल्कि आपराधिक मुकदमा भी दर्ज किया जाएगा।

आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के रिक्त 199 पदों को भरने के लिए वाराणसी में बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग द्वारा भर्ती प्रक्रिया चलाई गई थी। इस प्रक्रिया के तहत कुल 10,689 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 194 पदों पर नियुक्तियां की गईं। नीति के अनुसार, प्राथमिकता गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं (BPL कार्डधारकों) को दी जानी थी। शहरी क्षेत्र के लिए बीपीएल की अधिकतम वार्षिक आय सीमा 56,000 रुपये और ग्रामीण क्षेत्र के लिए 46,000 रुपये निर्धारित की गई थी। इन सीमाओं के अनुसार पात्रता तय की गई, लेकिन अब सामने आए तथ्यों से यह स्पष्ट हो रहा है कि कुछ महिलाओं ने इस आय सीमा से अधिक होने के बावजूद फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर नियुक्ति प्राप्त की।

इस पूरी प्रक्रिया के संदर्भ में उल्लेखनीय है कि 26 मार्च 2025 को वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने चयनित आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को नियुक्ति पत्र सौंपे थे। इस सरकारी आयोजन के बाद ही कुछ शिकायतें प्रशासन के संज्ञान में आईं, जिन पर त्वरित कार्रवाई करते हुए जांच बैठाई गई।

इस मामले का एक और चिंताजनक पक्ष यह है कि इसमें तहसील स्तर पर कार्यरत कर्मचारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है। पूर्व में पड़ोसी जिलों में भी आंगनबाड़ी भर्ती में फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल की शिकायतें आई थीं, जिनमें दस लेखपालों को निलंबित किया गया था। वाराणसी में भी अब तहसीलों में हड़कंप मचा हुआ है और अधिकारी एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह सिर्फ कुछ आवेदकों की व्यक्तिगत गलती नहीं, बल्कि तहसील के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत का भी मामला हो सकता है।

जिला कार्यक्रम अधिकारी डीके सिंह ने बताया कि फिलहाल वाराणसी जिले में कुल 3,914 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं, जिनमें 3,869 कार्यकत्रियां कार्यरत हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है। यदि इनमें नियुक्त होने वाली महिलाओं की पात्रता पर ही सवाल उठने लगे, तो इससे न केवल योजना की गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि उन वास्तविक पात्र महिलाओं का अधिकार भी मारा जाता है, जो सच में इस नौकरी की हकदार हैं।

प्रशासन का रुख अब बेहद सख्त नजर आ रहा है। सभी आठ मामलों की निष्पक्ष जांच कराई जा रही है और प्रमाणपत्रों की सत्यता की पुष्टि के लिए तहसील व लेखपाल स्तर पर सघन पड़ताल की जा रही है। जिला प्रशासन की ओर से यह भी संकेत दिया गया है कि यदि किसी कर्मचारी की भूमिका संदिग्ध पाई जाती है, तो उसे भी नहीं बख्शा जाएगा।

इस प्रकरण से स्पष्ट है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही सामाजिक कल्याण योजनाओं को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू करना कितना आवश्यक है। पात्रता के नियमों को दरकिनार कर यदि ऐसे फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्तियां होती हैं, तो यह केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला कदम होगा, जिससे समाज के सबसे वंचित वर्ग की महिलाओं के अधिकारों का हनन होता रहेगा।

प्रशासन का यह कदम एक सकारात्मक संकेत है कि यदि किसी स्तर पर भी अनियमितता पाई जाती है, तो दोषियों को दंडित किया जाएगा। यह आने वाले समय में ऐसी धांधलियों पर रोक लगाने की दिशा में एक अहम पहल साबित हो सकती है।

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