वाराणसी: रामनगर गुरुद्वारा सिंह सभा विवाद सुर्खियों में, ज्ञानी जसविंदर सिंह का इस्तीफा बना चर्चा का केंद्र

रामनगर के गुरुद्वारा सिंह सभा में ज्ञानी जसविंदर सिंह के इस्तीफे से विवाद गहरा गया, कमेटी के आंतरिक मतभेद और दुर्व्यवहार के आरोपों के चलते ज्ञानी ने पद त्याग दिया, सिख समाज में नाराजगी।

Tue, 20 May 2025 12:06:46 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: रामनगर स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा सिंह सभा एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गया है। गुरुद्वारा कमेटी के आंतरिक मतभेद और निरंतर बढ़ती आपसी कलह के चलते हाल ही में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब ज्ञानी जसविंदर सिंह ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। सूत्रों के अनुसार, गुरुद्वारा कमेटी के एक गुट द्वारा लगाए गए आरोपों और व्यवहारिक दुर्व्यवहार से क्षुब्ध होकर उन्होंने यह कदम उठाया। ज्ञानी के इस्तीफे के बाद रामनगर का सिख समाज मर्माहत है और उनमें गहरी नाराजगी देखी जा रही है।

ज्ञानी जसविंदर सिंह कई वर्षों से सेवा में जुटे रहे और धार्मिक दृष्टिकोण से उन्होंने स्थानीय संगत में एक विशेष स्थान बनाया था। उनके द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों, शिक्षा एवं सेवा भावना ने समाज को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके त्यागपत्र ने पूरे नगर में चिंतन और असंतोष की लहर दौड़ा दी है। यह कोई पहला अवसर नहीं है जब रामनगर गुरुद्वारा विवादों में आया हो, बल्कि इसके पूर्व भी कई बार कमेटी को लेकर सवाल उठते रहे हैं।

पूर्व नामित सभासद और वरिष्ठ भाजपा नेता सरदार मंजीत सिंह 'मंगू' ने पूर्ववर्ती कमेटी पर लाखों रुपये के गमन का गंभीर आरोप लगाया था, जिससे पहले ही गुरुद्वारा सिंह सभा की साख पर सवाल खड़े हो चुके थे। इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग भी समय-समय पर उठती रही है। अब जबकि एक गुट द्वारा गुल्लक पर ताला जड़ दिए जाने की घटना सामने आई है, तो पहले से चले आ रहे विवाद को और अधिक हवा मिल गई है। यह घटनाक्रम नगर में चर्चा का विषय बना हुआ है, और सिख संगत के बीच यह चिंता का विषय है कि धार्मिक स्थलों पर इस प्रकार की राजनीति और आंतरिक खींचतान किस दिशा में लेकर जाएगी।

इस संदर्भ में वरिष्ठ कांग्रेस नेता और समाजसेवी सरदार सतनाम सिंह ने भी अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि रामनगर गुरुद्वारा सिंह सभा में हो रही घटनाएं अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं और इससे पूरे क्षेत्र की धार्मिक एकता को ठेस पहुंच रही है। उन्होंने बनारस के सिख समुदाय के वरिष्ठजनों से अपील की है कि वे आगे आकर इस मामले में हस्तक्षेप करें और चुनाव की प्रक्रिया को पुनः प्रारंभ कर निष्पक्ष ढंग से नई कमेटी का गठन सुनिश्चित करें। साथ ही उन्होंने दोनों गुटों के बीच समझौते की आवश्यकता पर भी बल दिया है, जिससे गुरुद्वारा का धार्मिक वातावरण सुरक्षित और समर्पित बना रहे।

यह बात भी उल्लेखनीय है कि गुरुद्वारा सिंह सभा का चुनाव कई वर्षों से नहीं हुआ है, जिससे आंतरिक असंतोष लगातार गहराता जा रहा है। यह स्थिति न केवल धर्मस्थल की गरिमा पर प्रश्नचिन्ह लगाती है, बल्कि नगर की सामाजिक एकता और धार्मिक सौहार्द को भी प्रभावित करती है। नगर की संगत अब नेतृत्व से यह अपेक्षा कर रही है कि वह व्यक्तिगत मतभेदों से ऊपर उठकर समाज की भलाई के लिए कार्य करे और गुरुद्वारा की पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने का प्रयास करे।

रामनगर गुरुद्वारा सिंह सभा से जुड़ा यह घटनाक्रम केवल एक संस्था की समस्या नहीं, बल्कि धार्मिक जिम्मेदारियों और पारदर्शिता की परीक्षा भी है। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि क्या वरिष्ठ सिख नेता और समाजसेवी इस मामले में समाधान की दिशा में सार्थक पहल कर पाते हैं या यह विवाद और गहराता है। संगत की अपेक्षा है कि सभी संबंधित पक्ष जिम्मेदारी और संयम से काम लें ताकि यह पवित्र स्थल पुनः धार्मिक एकता और सेवा का प्रतीक बन सके।

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