Wed, 11 Jun 2025 09:50:09 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: रामनगर/काशी की पवित्र मिट्टी न केवल धर्म और अध्यात्म की भूमि रही है, बल्कि यहां की हर गली, हर चौक और हर कोना देश की आत्मा से संवाद करता है। यही धरती है जिसने संतों, महात्माओं और महापुरुषों को जन्म दिया। और उन्हीं में से एक हैं भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, श्री लाल बहादुर शास्त्री। उनकी ईमानदारी, सादगी और राष्ट्रभक्ति आज भी करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा हैं। और जब उनकी प्रतिमा को नया जीवन मिलता है, तो वह केवल मूर्तियों की सफाई नहीं होती। वह इतिहास, संस्कृति और चेतना को फिर से जीवंत करने का प्रयास होता है।
रामनगर के वार्ड नंबर 65 के पार्षद रामकुमार यादव ने इस दिशा में एक ऐसा सराहनीय और अनुकरणीय कार्य किया है, जिसकी गूंज अब केवल काशी तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश में हो रही है। उन्होंने न केवल शास्त्री जी की प्रतिमा की सफाई, रंग-रोगन और प्रकाश व्यवस्था को दुरुस्त कराया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि महापुरुषों की पूजा सिर्फ पुष्प अर्पित कर के नहीं, बल्कि उनके विचारों और स्मृति स्थलों की देखरेख से होती है।
जब हमारे संवाददाता ने उनसे इस पर बातचीत की, तो भावनाओं से लबरेज पार्षद यादव ने कहा, “मैं गौरवान्वित हूं कि मेरे वार्ड में शास्त्री जी का जन्म हुआ। उनकी प्रतिमा की सेवा मेरे लिए किसी पूजा से कम नहीं। मैं इसे एक कर्तव्य नहीं, बल्कि श्रद्धा और राष्ट्रसेवा का माध्यम मानता हूं।”
स्थानीय लोगों की आंखों में चमक और चेहरे पर गर्व, इस पहल की सच्ची गवाही देते हैं। वहीं शास्त्री चौक पर चाय की दुकान चलाने वाले बनारसी यादव ने उत्साहित होकर बताया, “अब यहां अंधेरा नहीं, उजाला है। प्रतिमा के चारों ओर की सफाई और नई लाइटों से सब कुछ बदल गया है। अब यह चौक एक प्रेरणा स्थल बन गया है।”
पान विक्रेता दीपू की बातों में आत्मीयता छलक रही थी। उन्होंने कहा, “पहले लोग बस गुजरते थे, तो उनका ध्यान उतना नहीं जाता था। लेकिन जब से रंग रोगन और सफाई हुई है, बरबस ही लोगो का ध्यान शास्त्री जी तरफ खींचा चला आता है। और अब लोग रुककर शास्त्री जी को प्रणाम करते हैं।
गुजरात से अपने परिवार के साथ काशी दर्शन को आए विकास ने जब शास्त्री जी की प्रतिमा देखी, तो भावुक हो गए। “इतनी स्वच्छ और सुंदर प्रतिमा देख दिल भर आया। हमने इतिहास में पढ़ा था, अब उसे यहां जीवित पाया।”
पर्यटकों में कर्नाटक की नैय्या अप्पा और उत्तराखंड से आईं एक रिटायर्ड फौजी महिला ने बताया कि शास्त्री जी की स्मृति भवन देखने के बाद यह प्रतिमा उनके लिए जैसे किसी जीवंत प्रेरणा से मिलने जैसा अनुभव रही।
और वहीं एक ऐसी आवाज आई, जो वर्षों से इस स्थल की गवाह रही है। माला और फूल बेचने वाले पप्पू माली ने गर्व से बताया कि,“यहां जो भी नेता हो, अधिकारी हो या आम जन, जब भी शास्त्री जी की प्रतिमा के सामने आता है, सिर श्रद्धा से झुक ही जाता है। सबके दिल में उनके लिए अपार सम्मान है।”
दुकानदार शेरू ने चाय की चुस्की लेते हुए मुस्कराकर कहा, कि “इस रास्ते से हजारों लोग गुजरते हैं, पर हर कोई नमन किए बिना नहीं जाता। लगता है जैसे शास्त्री जी खुद यहीं कहीं मौजूद हों, मुस्कराते हुए।”
इस समर्पण की लहर के बीच एक गंभीर अपील भी उठती है। स्थानीय लोग, पर्यटक और स्वयं पार्षद भी नगर निगम से निवेदन करते हैं कि अवैध बैनर, पोस्टर, गंदगी और अतिक्रमण को सख्ती से हटाया जाए। क्योंकि यह स्थान केवल एक प्रतिमा नहीं, राष्ट्र चेतना का प्रतीक है। वहीं यातायात विभाग को भी चाहिए कि इस मार्ग पर अवैध पार्किंग रोकें, ताकि यह स्थल गरिमा और व्यवस्था का उदाहरण बन सके।
लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन मानो एक उज्ज्वल दीपक हो, जिसमें राष्ट्रसेवा की लौ कभी मंद नहीं हुई। 'जय जवान, जय किसान' उनका नारा नहीं, भारत की आत्मा की पुकार थी। और जब कोई जनप्रतिनिधि शास्त्री जी की मूर्ति की सेवा को कर्तव्य नहीं, भक्ति माने तो यकीन मानिए, वह देश सेवा का नया अध्याय लिखता है।
यह खबर केवल स्थानीय विकास का विवरण नहीं, बल्कि एक राष्ट्रप्रेम का घोष है। यह बताती है कि अगर एक पार्षद चाह ले, तो एक प्रतिमा के माध्यम से पूरा समाज प्रेरित हो सकता है। यह उदाहरण है कि देशभक्ति भाषणों से नहीं, कर्मों से दिखती है।
और जब अगली बार कोई रामनगर के उस चौक से गुजरे, तो उसके कानों में यही गूंजे, "जय जवान, जय किसान"।
शास्त्री जी की चमक को जीवित रखना, केवल पार्षद यादव का नहीं, हर भारतीय का धर्म है। और यही धर्म आज एक प्रतिमा के माध्यम से, फिर से जी उठा है।
सौजन्य: न्यूज रिपोर्ट