होलिका दहन: 13 मार्च को मनेगा पर्व, भद्रा काल के बाद होगा शुभ मुहूर्त में पूजन

इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च को मनाया जाएगा, भद्रा काल सुबह 10:35 बजे से रात 11:29 बजे तक रहने के कारण, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11:30 बजे के बाद होगा।

Wed, 12 Mar 2025 10:25:31 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

यूपी खबर: होलिका दहन हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों का त्योहार होली खेली जाती है, जिसे दुल्हैंडी भी कहा जाता है। इस वर्ष 13 मार्च, गुरुवार को होलिका दहन किया जाएगा और 14 मार्च को रंगों की होली मनाई जाएगी।

होलिका दहन का उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक राक्षस ने अपनी प्रजा को भगवान विष्णु की पूजा करने से मना कर दिया था। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। अंत में, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। तभी से यह पर्व बुराई के अंत और सच्चाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च को होगा। इस दिन भद्रा काल सुबह 10:35 बजे से रात 11:29 बजे तक रहेगा। चूंकि शास्त्रों के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन करना वर्जित होता है, इसलिए होलिका दहन का सही समय 13 मार्च की रात 11:30 बजे के बाद होगा। इस दौरान प्रदोषकाल रहेगा, जो होलिका दहन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

होलिका दहन से कुछ दिन पहले ही गांवों और शहरों में लकड़ियां, उपले और अन्य सामग्री इकट्ठी कर होलिका बनाई जाती है। होलिका दहन की पूजा इस प्रकार की जाती है:-

1. होलिका की परिक्रमा – पूजन से पहले होलिका के चारों ओर कच्चे सूत का धागा लपेटकर तीन या सात बार परिक्रमा की जाती है।

2. पूजन सामग्री – रोली, अक्षत (चावल), हल्दी, फूल, मिष्ठान, नारियल, गुड़, गेंहू की बालियां और बताशे चढ़ाए जाते हैं।

3. शुद्ध जल से अभिषेक – जल से होलिका का अभिषेक कर पूजा की जाती है।

4. होलिका दहन – शुभ मुहूर्त में होलिका को जलाया जाता है और उसमें नारियल, भुट्टे, गेहूं की बालियां एवं अन्य सामग्री अर्पित की जाती है।

5. भस्म का महत्व – होलिका की अग्नि से उत्पन्न भस्म को शुभ माना जाता है। इसे घर में लाने और तिलक लगाने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

होलिका दहन पर विशेष परंपराएं:-

1. पान का पत्ता अर्पण – मान्यता है कि होलिका दहन में पान का पत्ता डालने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

2. सुपारी का महत्व – होलिका में सुपारी डालने से भगवान गणेश की कृपा बनी रहती है।

3. नारियल अर्पित करना – नारियल को शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसे होलिका की अग्नि में डालने से जीवन में बाधाएं दूर होती हैं।

4. गेंहू की बालियां अर्पण करना – कृषि से जुड़े लोगों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण परंपरा है। इससे फसल अच्छी होने की मान्यता है।

5. होलिका की राख को घर में छिड़कना – इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सकारात्मकता बनी रहती है।

होलिका दहन के अगले दिन होली खेली जाती है, जिसे दुल्हैंडी कहते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग, गुलाल लगाकर खुशियां मनाते हैं। यह पर्व समाज में प्रेम, सौहार्द और भाईचारे का संदेश देता है।

होलिका दहन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक परंपरा भी है, जो हमें सिखाता है कि अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य और अन्याय पर न्याय की जीत अवश्य होती है। यह पर्व हमें बुराई से दूर रहने और अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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