Fri, 18 Apr 2025 13:30:28 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
प्रयागराज: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सर सुंदरलाल अस्पताल के बहुचर्चित टेंडर घोटाले में बड़ा मोड़ आ गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी बनाए गए पल्स डायग्नोस्टिक के एमडी मनोज कुमार शाह को किसी भी तरह की राहत देने से साफ इनकार कर दिया है। साथ ही उनकी ओर से दर्ज एफआईआर रद्द करने की गुहार लगाते हुए दाखिल याचिका भी वापस लेने की इजाजत देते हुए खारिज कर दी गई।
यह महत्वपूर्ण आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड से यह प्रमाणित होता है कि याची यानी मनोज शाह के पास टेंडर आवेदन के समय वैध जीएसटी नंबर नहीं था। इसके बावजूद उसने जीएसटी आवेदन संख्या का उपयोग कर टेंडर में भाग लिया, जो नियमों का सीधा उल्लंघन है।
पूरा मामला क्या है?
शिकायतकर्ता डॉ. उदयभान सिंह द्वारा वाराणसी के लंका थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार, बीएचयू अस्पताल प्रशासन ने 6 अगस्त 2024 को पीपीपी मोड पर डायग्नोस्टिक इमेजिंग सेवाओं के संचालन के लिए टेंडर जारी किया था। इस प्रक्रिया में मनोज कुमार शाह ने कथित रूप से फर्जी जीएसटी नंबर के जरिए टेंडर प्राप्त कर लिया।
आरोप है कि इस काम में अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर कैलाश कुमार, डॉ. ए.एन.डी. द्विवेदी, रश्मि रंजन और सुनैना बिहानी की भी भूमिका रही। सभी के खिलाफ 19 मार्च को धोखाधड़ी समेत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी की कि टेंडर आवेदन के समय सभी जरूरी योग्यताएं पूरी होना अनिवार्य था। लेकिन याची ने अधूरी पात्रता के बावजूद आवेदन किया, जिससे टेंडर की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठते हैं।
याची पक्ष की ओर से जब महसूस किया गया कि अदालत उनके तर्कों से संतुष्ट नहीं हो रही है, तो याचिका वापस लेने का आग्रह किया गया। अदालत ने इस मांग को स्वीकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
इस आदेश के बाद अब मनोज कुमार शाह समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे की जांच और कार्रवाई बिना किसी कानूनी रोक के जारी रहेगी। इससे बीएचयू अस्पताल के टेंडर घोटाले में कई और चौंकाने वाले खुलासे होने की संभावना बढ़ गई है।
नजरें अब अगली कार्रवाई पर...
बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में हुए इस कथित घोटाले ने चिकित्सा क्षेत्र में पारदर्शिता और ईमानदारी को लेकर गंभीर बहस छेड़ दी है। आम जनता और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग अब इस बात पर नजरें टिकाए हुए हैं कि जांच एजेंसियां और न्यायालय इस मामले में आगे क्या रुख अपनाते हैं।
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